बर्न। द स्विस पीपल्स पार्टी (एसवीपी) ने अपनी सरकार के उस कदम का विरोध किया है जिसमें उसने भारत समेत 11 देशों को स्विजरलैंड के बैंक खातों के बारे में जानकारी देने का करार किया है। पार्टी का कहना है कि इससे बैंकों की साख कम होती तो दूसरे देशों में रह रहे नागरिकों को खतरे का सामना करना पड़ सकता है। स्विटजरलैंड की सरकार ने भारत के अलावा रूस, चीन, अर्जेटीना, ब्राजील, इंडोनेशिया, कोलंबिया, मैक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका व संयुक्त अरब अमीरात के साथ समझौता किया था। इसके तहत फैसला किया गया था कि इन देशों के साथ ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफॉरमेशन सिस्टम (एईओआइ) शुरू किया जाएगा। यह समझौता अगले साल से अमल में आएगा। इसके तहत बैंकों में जमा धन का ब्योरा संबंधित देशों को मिल सकेगा। भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि कालेधन पर सरकार पहले ही बड़ा अभियान शुरू कर चुकी है। एसवीपी स्विजटलैंड की दक्षिण पंथी पार्टी मानी जाती है। उसका कहना है कि विश्व में हमारे बैंकों की साख है। लोग मानते हैं कि गोपनीयता के मामले में बैंक कोई समझौता नहीं करते, लेकिन जब सूचनाएं लीक होने लगेंगी तो स्विस बैंकों पर कोई भरोसा नहीं करेगा। हालांकि पार्टी का ये भी कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई व लोकतंत्र की बहाली के पैमाने पर आकलन के बाद जिस देश को कम से कम 45 अंक मिलते हैं, उसके साथ सरकार समझौते को अमल में न लाया जाए। पारदर्शिता में भारत का की 79वीं (176देशों में)रैंक है जबकि लोकतंत्र की बहाली में उसके सौ में से 77 अंक हैं। इस मामले में सबसे बुरा हाल चीन व रूस का है जबकि स्विटजरलैंड 96 व अमेरिका के 86 अंक हैं। उल्लेखनीय है कि बैंकों की गोपनीय जानकारी साझा न करने की बात स्विटजरलैंड के संविधान में दर्ज है, लेकिन इसके बावजूद वहां की सरकार ने ये समझौता किया है। ये कालेधन के खिलाफ वैश्विक स्तर पर एक लड़ाई मानी जा रही है। माना जाता है कि दुनिया के बहुत से देशों के लोग अपने कालेधन को स्विस बैंकों में जमा कराने में रुचि लेते हैं। गोपनीयता इसकी प्रमुख वजह है। (साभार )
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