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जीवन का अमर सन्देश है बच्चन जी की मधुशाला (मधुशाला पर 32 पंक्तियों की रचना)

harivansh rai bachchan poem

virendra

B. of Journalism
M.A, English & Hindi
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित- 
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)

धर्म-सार है मधुशाला

श्रीराम की वाणी में झरती थी झर-झर झर-झर हाला
श्रीकृष्ण की मुरली में बहती थी कल-कल छल-छल हाला
इन दोनों के हृदय सिन्धु में जिसने भी डाला प्याला
पा गया समझो पावन-मन विश्व सुन्दरी मधुबाला।
सुझा गए महान कवि थे जो खुद में एक लुभावन मधुशाला
बोले राह पकड़ तू एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला
ध्यान समर्पण त्याग बिना कैसे तू पहुंचेगा मधुशाला
इनके बिना तो चख पाना तक मुश्किल बच्चन जी की हाला।
जब तक रे छल प्रपंची मानुष है तेरा दिल थोड़ा सा भी काला
मामूली सा कतरा तक नसीब ना होगा भूल जा मन भर हाला
कर ले साफ उठा जतन का कपड़ा बढ़ने मत दे कुविचारों का जाला
असफल हो जाएगा सारा जीवन तलाश ना पाएगा मधुशाला।
ऐ जग तू अगर समझ पाता ज्ञान की गठरी बच्चन जी की मधुशाला
नालायक वीर कभी ना याद दिलाता बच्चन जी की यज्ञशाला
अब जब पड़ गया रे बन्धु तेरा वीर से अनचाहा पाला
चल तू क्या याद रखेगा क्या होती है अमृत से बढ़ कर हाला।
जीवन में तूने देखी होंगी बाला से बढ़ कर बाला
अच्छे मन के द्वार पर देखा होगा लटका ताला से बढ़ कर ताला
पर नासमझ तू पा नहीं पाया वह अलौकिक प्याला
जिसमें परमेश्वर ने भर रखी है ओस कणों की मधुरस हाला।
मार-काट लूट-खसोट झूठ-फरेब की दुनियादारी का प्याला
पीता है ठूंस-ठूंस कर गरदन तक भर कर जानी जो तू हाला
वह तो ऐ भटके मानुष है नीच निकम्मों की खाला
स्वार्थी सरकार सहेज कर रखती है कहती है स्वाद से मधुशाला।
नत मस्तक हूं मैं तो दर पर हरिवंश राय जी की मधुशाला
जिसने अपनायी जीवन में साफगोई लेखनी में सच्चाई की हाला
कभी नहीं जीवन को जिसने कथनी-करनी के भ्रम में डाला
अलग हट कर मस्ती के रंग में मर्यादा के संग जिसने रच डाली पूरी मधुशाला।
राम-राम और श्याम-श्याम मन से जग में जपने वाला
भोले मन से सदाचार के पथ पर हरदम चलने वाला
मेहनत और ईमानदारी का अनमोल जीवन राग गुनगुनाने वाला
पल-पल पीता है हलाहल-हाला मन उसका है सुन्दर मधुशाला।

                                                     जय भारत

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