
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
दो पैरों पर खड़े पशु को
मानव सुधा पिलाने वाली
हृदय उदार बनाने वाली
मन के दुर्गुण हरने वाली
मन को सदा तपाने वाली
अध्यात्म ज्ञान से भरने वाली
अखिल विश्व को परिवार बताने वाली
सब ओर प्रकृति की छटा निराली
होंठ भरे ममता की प्याली
व्याकुल रहती पल-पल करती सबकी रखवाली
भरकर कण-कण में शान्ति की वाणी।
जब-जब आए खूँखार रक्त के प्यासे
अत्याचार अन्याय बर्बरता के तमाशे
सभ्यता-संस्कृति के रहे वे प्यासे
घुलते-मिलते रहे भूलकर पशुता के नारे
वेदों-उपनिषदों की रिचाओं के गूँजते संदेश प्यारे
रामायण गीता के समरसता भरे जीवंत गीत सारे
कुंभ-महाकुंभ धाम-महाधाम भागवतों के जयकारे
आत्मा-परमात्मा की सनातन चिंतन धारा में धुलते रहे मस्तिष्क हमारे
ऐसी हम सब की माता ‘‘भारत माता’’ तेरे चरणों में पल-पल नत-नत भाल हमारे।