नई दिल्ली । नोटबंदी के दौरान बड़े पैमाने पर बैंक खातों में राशि जमा करने वाली फर्जी कंपनियों को नए कंपनी लॉ के तहत क्रिमिनल केस का भी सामना करना पड़ सकता है। फर्मों के मकडज़ाल के जरिए रकम की हेराफेरी करने वाली कंपनियों के खिलाफ सरकार के ऐक्शन की यह शुरुआत हो सकती है। कॉर्पोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री ने रिटर्न फाइल न करने वाली 2 लाख कंपनियों का पंजीकरण रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मंत्रालय इन पर नए कंपनीज ऐक्ट के सेक्शन 447 के तहत कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है। फ्रॉड करने के मामलों में इस सेक्शन के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। इस कानून के मुताबिक फ्रॉड के केस में दोषियों को 3 से 10 साल तक की सजा हो सकती है, इसके अलावा जितने राशि के फ्रॉड का आरोप है, उतने तक का ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। किसी चीज को छिपाना या जानकारी न देना फ्रॉड के दायरे में आता है। सूत्रों ने बताया कि कंपनियों को डीरजिस्टर करने वाले रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज की ओर से इस पर विचार किया जाएगा। इसके अलावा जांच जांच के जरिए ऐसी कंपनियों को मिलने वाले फंड के स्रोतों का भी पता लगाया जाएगा। इसके बाद ऐसे डायरेक्टर्स पर बैन भी लगाया जा सकता है। इनमें से कुछ टॉप लिस्टेड कंपनियों के बोर्ड में भी शामिल हैं। इसके अलावा ऐसी कंपनियों के बैंक अकाउंट्स को फ्रीज भी किया जा सकता है। राजस्व विभाग और कॉर्पोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री साथ मिलकर शेल कंपनियों पर ऐक्शन का खाका तैयार कर रहे हैं। इन कंपनियों का कारोबार तो बेहद छोटा है, लेकिन इन्हें कंपनियों के मकडज़ाल के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने की आशंका है। सरकार को संदेह है कि ऐसी तमाम कंपनियों को नोटबंदी के दौरान पैसा जमा करने के लिए इस्तेमाल किया गया, जिसे बाद में निकाल लिया गया। टैक्स डिपार्टमेंट के शुरुआती डेटा के मुताबिक 6,000 से कंपनियों के बैंक खातों से 4,600 करोड़ रुपये तक की हेराफेरी की गई। कुछ कंपनियों के पास 900 बैंक खाते हैं। एक टैक्स अधिकारी ने कहा, कई बैंक खाते होना अवैध नहीं है, लेकिन हमें यह साबित करने की जरूरत होगी कि यह रकम ज्ञात स्रोतों से ही हासिल हुई है।
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