0-लव जिहाद को बढ़ावा देने का लगा था आरोप
देहरादून (आरएनएस)। उत्तराखंड सरकार ने राज्य में फिल्म ‘केदारनाथ’ के प्रदर्शन पर रोक लगा दी है । पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने शुक्रवार को बताया कि राज्य सरकार ने जिलाधिकारियों को शांति-व्यवस्था बरकरार रखने का निर्देश दिया है और पूरे राज्य में फिल्म केदारनाथ के प्रदर्शन पर बैन लगा दिया है। इससे पहले राज्य सरकार ने सतपाल महाराज की अध्यक्षता में एक समिति गठित का गठन किया था। इसी समिति की सिफारिश पर राज्य सरकार ने यह फैसला लिया है।
सतपाल महाराज ने मीडिया से बातचीत में कहा, कमिटी ने अपनी सिफारिश सीएम को भेज दी है और फैसला किया है कि कानून-व्यवस्था की समीक्षा की जानी चाहिए। हमने जिलाधिकारियों से कहा है कि शांति व्यवस्था बनाए रखें। हरेक ने यह फैसला किया है कि केदारनाथ मूवी को बैन किया जाना चाहिए। यह फिल्म राज्य में हर जगह बैन है।
इससे पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट ने गुरुवार को फिल्म ‘केदारनाथÓ की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत और अपना फिल्मी सफर शुरू कर रहीं सारा अली खान मुख्य भूमिका में हैं। गढ़वाल के स्वामी दर्शन भारती ने मांग की थी कि फिल्म पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि भारती को अपनी शिकायत के साथ रुद्रप्रयाग जिला मैजिस्ट्रेट के पास जाना चाहिए।
उत्तराखंड के अलावा बॉम्बे और गुजरात हाई कोर्ट में फिल्म को लेकर जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिसे भी खारिज कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की एकल पीठ को बताया गया कि फिल्म को प्रतिबंधित कर देना चाहिए क्योंकि यह हिंदू भावनाओं को चोट पहुंचाने के अलावा उन लोगों को भी आघात पहुंचाती है, जो 2013 में आई बाढ़ से प्रभावित हुए थे। इस बाढ़ ने केदारनाथ को काफी नुकसान पहुंचाया था।
याचिकाकर्ता की दलील थी कि यह फिल्म मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की के बीच विवाह का संकेत देकर ‘लव जिहादÓ को प्रचारित करती है। इस आपत्ति के मद्देनजर राज्य सरकार ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता वाली एक समिति गठित की थी। इसमें गृह सचिव नितेश कुमार, पुलिस महानिदेशक अनित रतूड़ी और पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर शामिल थे।
उधर, बॉम्बे हाई कोर्ट ने ने गुरुवार को एक जनहित याचिका खारिज कर दी थी जिसमें फिल्म ‘केदारनाथÓ की रिलीज का विरोध करते हुए कहा गया था कि यह फिल्म धार्मिक भावनाएं आहत करने के साथ-साथ भगवान केदारनाथ की गरिमा को भी घटाती है। मुख्य न्यायमूर्ति नरेश पाटिल और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें विस्तार से सुनीं। फिर उन्होंने जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सुनवाई योग्य नहीं है।
दो स्थानीय वकीलों प्रभाकर त्रिपाठी और रमेशचंद्र मिश्रा द्वारा दायर इस याचिका में दावा किया गया था कि वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म में न केवल आपदा की गंभीरता को कम करके दिखाया गया है बल्कि यह धार्मिक भावनाएं भी आहत करती है। याचिकाकर्ताओं ने कहा ‘कहानी काल्पनिक है। फिल्म एक हिंदू ब्राह्मण लड़की और एक मुस्लिम लड़के की प्रेम कहानी बताती है जो विश्वास से परे है। इसे उत्तराखंड में बड़ी संख्या में हिंदू श्रद्धालुओं की जान लेने वाली प्राकृतिक आपदा से जोड़ा गया है।Ó
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