
B. of Journalism
M.A, English & Hindi
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
घंटाघर चौराहे पर सुबह-सुबह जब सजता है घर
सुबह सवेरे की रुत आई
ठंडी-ठंडी बर्फीली हवा लाई
शरीर में ठिठुरन भर आई
गरम चाय की तलब छाई
चारों तरफ तब नजर घुमाई
जब कोई आस नजर नहीं आई
तभी इक टोली दनदनाती आई
अस्पताल के बिस्तर पर चाई लाई
तब हमने गरमाई पाई
यही नजारा सड़कों पर भाई
जन सेवा समिति जुटाती पाई-पाई
सेवा भाव में लगाती पाई-पाई
कर सकता क्या कोई इसकी भरपाई
इसने जो सोच है पाई
पाटी छोटे-बड़े की खाई
द्रोण नगरी की यह बड़ी अच्छाई।
-जय भारत -जय जय, जन सेवा समिति का चाय आन्दोलन