
B. of Journalism
M.A, English & Hindi
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
स्वामी विवेकानन्द का भारत कहाँ
भारत माता के माथे का तिलक-सार
भारत माता के हृदय का असीमित दुलार
हर भारतवासी के लिए था मन में बराबर प्यार
हर दुखी पीड़ित के लिए बहाई अश्रु धार
भारत माता के लिए मर मिटने को उत्सुक बार-बार
भारत माता के चरण कमलों पर मोहित रे भौंरे मानवता के भंडार अपार
पूरी दुनिया को दिखाने में सफल रहा जन्मजात योगी तू भारत की मानव संस्कृति की असली धार।
श्रीराम और श्रीकृष्ण के बाद धरती के तीसरे बड़े व्यक्तित्व अपार
मानवता के सागर उमड़ते थे हृदय में तेरे ओर-छोर अपरम्पार
एक-एक शब्द एक-एक साँस हर करवट में तेरी समाया था जगत हित का खुमार
भारत की नैतिक और भौतिक सम्पन्नता की छलकती थी आस तेरी आँखों में बेशुमार
एक संत की था तू पराकाष्ठा एक महामानव का था तू असीम विचित्र विस्तार
केवल संयोग नहीं था कि राम और कृष्ण के साथ परमहंस नामधारी संत बना आपका गुरु विरला अपार
भारत को सही मायने में आपने ही पूर्णता के साथ शिकागो में किया था परिभाषित मानवीय संवेदनाओं के सुनार
आप दरअसल भारत की परिभाषा हैं चलती-फिरती सोचती और खुद को बाँचती लेकर मानव शरीर में अवतार।
भारत के हे सनातन मानवीय आधार
व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण सुझाई थी आपने शिक्षा की ऐसी तस्वीर
हे वेदांती हे उपनिषदों के उत्साही प्रशंसक नहीं समझ पाया अभी तक भारत तेरी यह पीर
प्रभो तेरे प्यारे भारत को लत पड़ गयी खाने की उधार की खीर
आपने बताया था भविष्यफल कि भारत बनेगा महानतम पहले जैसा एक बार फिर
किन्तु भारत माता के परम ओजस्वी परम विद्वान लाड़ले तेरी इस भविष्यवाणी पर मन नहीं होता स्थिर।
-जय भारत
(10 या 11 जनवरी 2019 को अंग्रेजों की भाषा में यही कविता)