
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
नगर निगम के चुनाव प्रचार का
धूम-धड़ाका थम गया
नगर में इतिहास रचने का ख्वाब
फिर पाँच साल के लिए गुम गया।
सोचा था
लीक से हटकर
नगर में कुछ ऐसा होगा
ऊपर चाँद-तारे वही होंगे
पर घाटी का सितारा कोई एकदम नया होगा।
ले डूबे नैया को
रजनी रावत के खास-खेवनहार
शुरू से ही दिख रहा था
वही घिसा-पिटा अंदाज
वही पुराना आगाज़
आधे मन और आधे दिल का शोर-शराबा बार-बार।
अरे मैनेजरो रजनी जी के
दिमाग तुमने बेच खाए
धन सब कुछ नहीं होता
दौड़-भाग के दिखावों से भी कुछ नहीं मिलता
तुमने पन्द्रह दिन यों ही गँवाए।
कुछ ऐसी बहार लानी थी
मायूसी की चद्दर हटानी थी
विकल्प की चाह जगानी थी
इस चाह की थाह पानी थी
खुद के अहंकार की धूल हटानी थी
जन-जन के दिल में जगह बनानी थी
कुछ कर गुजरने वालों के जज़्बे को सलाम करना था
मौकापरस्तों से फौरन किनारा करना था
पर जानी तुमने ऐसा कुछ भी न किया
कह रहा हम लोगों का वफादार जिया।
अपनों ने ही रायता फैला दिया
इन लालची नालायकों को जी-भर दिया
स्वार्थहीन लायकों को गलतफहमी में टरका दिया
अरे रजनी जी आपने मैडम ये क्या कर दिया
एक और अच्छा मौका गँवा दिया।
-इति
(A poem on the most promising political lady figure on coming sunday or monday)