सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
सुधर जाओ पुलिस वालो
कि आए दिन मँहगाई के
तुम्हारे सताए रेहड़ी खोंमचे ठेली वालों के
बीवी बच्चे कोस रहे हैं तुम्हे चिल्लाइके
लूटते आ रहे हो उन्हे वर्दी का रौब दिखाइके
किसी का उठाकर तराजू
किसी का उठा का बाट
ले जाते हो गलियाइके
छोड़ दो बेरहमो लूट की लत
पूत हो अगर अपनी माईके।
थानों से बह रही मैली गंगा बल खाइके
बेईमानी का कचरा बहाइके
छुटभइये नेताओं कुछ पार्षदों को मिलाइके
गैर-कानूनी सब्जी बाजारों को लगाइके
अनाप-शनाप धंधे जहाँ-तहाँ खुलवाइके
बटोर रहे लुटेरे पुलिसवाले दसों दिशाओं से धन उगाहिके।
तुम्हारे सबसे बड़े साहब
कितने इन्साफ-पसन्द हैं देखो जाइके
बडे़-बड़े अफसरों के नाम पर तुम लोग चूना लगाइके
नोंचते हो ट्रक वालों, बाइक वालों, ठेली वालों को धमकाइके-डराइके
जैसे भूखा गिद्ध नोंचता है मरे जीव का मांस लार टपकाइके
लूट-खसोट की दशकों पुरानी लत में आइके
वर्दी वाले गुंडे बन जाते हो सूरती-पान खाइके।
‘राम-कृष्ण’ प्रदेश के अन्दर
विश्व प्रसिद्ध लड्डू निर्माता राजा हरिश्चन्द्र जैसे सत्यवादी
कानपुर वाले ‘ठग्गू-हलवाई’ की कह रहे कसम खाइके
जब तुम्हे जाता है कोई नोटों की गड्डी थमाइके
तुम टूट पड़ते हो बेगुनाहों पर जूते-चप्पल उठाइके
सुधर जाओ टूट गए सारे रिकार्ड तुम्हारे गुनाहोंके।
हम तो तुम्हे कहते हैं
फौजी सीमा के भीतर वाले
तुम्हे मानते हैं दिल से अपने रखवाले
कुछ पुलिसवालों की ईमानदारी के हैं हम मतवाले
किंतु गरीब ठेलीवालों के दर्द के हमारे दिलों पर गहरे छाले
गरीबों बेगुनाहों को लूटते-लूटते तुम्हारे दिल हो गए काले
देखो राय हमारी मानो देश में ईमानदारी के पड़ गए लाले
तोड़ फेंको दिलों पर लगे अपने नासमझी-निकम्मेपन के ताले।