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पलायन! ये शब्द जितना सीधा लगता है उतना है नहीं

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पलायन पहाड़ो से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन। पलायन आज उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की इतनी बड़ी समस्या बन चुकी है कि सरकार को आज पलायन विभाग ही बनाना पड़ गया है। पलायन को लेकर आप लोग देखेंगे यूट्यूब से लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह के वीडियो बने पड़े हैं। कई लोग पलायन के विषय पर कई तरह के आर्टिकल लिख चुके हैं, पर इतने वीडियोस और इतने आर्टिकल्स और सरकार के इस (पलायन विभाग) कदम के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। इतनी मेहनत के बावजूद भी हम पलायन की असली समस्या को न ही समझ पाए हैं और न ही उससे निपट पाए हैं। किसी समस्या से तभी निपटा जा सकता है जब हमें उसकी ठोस वजह मालूम हो और इतना होने के बावजूद भी हम ठोस वजह पर नही पहुंच पाएं हैं। आज हम सिर्फ बेरोजगारी, शिक्षा, और स्वास्थ्य को पलायन का कारण मान कर बैठे हुए हैं। असल मे और गहराई से देखा जाए तो इसके ठोस कारण कुछ और ही निकलते हैं जो एकदम हैरान करने वाले हैं। हम बात करते हैं कि बेरोजगारी के कारण पलायन हो रहा है पर सही तरीके से देखा जाए तो बात कुछ और ही है। उदाहरणतः सरकारी कर्मचारी जिनके पास सबसे अच्छा रोजगार है और वो पहाड़ो में कार्य तो कर रहे हैं पर उनके मकान और परिवार वाले शहरों में हैं। रोजगार होने के बावजूद वो पहाड़ों में नही रहना चाहते हैं। रोजगार होने के बावजूद भी शहरी झुकाव बेरोजगारी के कारण पलायन होने वाली कहानी को कुछ अलग ही दिशा देता है। बात करते हैं शिक्षा की । कुछ लोग पलायन का कारण शिक्षा को भी मानते हैं किंतु हाल में ही आये उत्तराखंड बोर्ड के रिजल्ट ने दूध का दूध और पानी पानी कर दिया है। पहाड़ के बच्चों ने मैदानी क्षेत्रों के बच्चों से अच्छा प्रदर्शन करके इस बात को पूरी तरह नकार दिया है कि पहाड़ में पढ़ाई का स्तर उच्च नही है। उन्होंने ये सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा किसी विशेष स्थान की मोहताज नही होती है। कुछ लोगो का मानना है कि पहाड़ो में मूलभूत सुविधा नही हैं जिस कारण पलायन हो रहा है किंतु ये भी किसी हद तक सही नही है आज गांव-गांव में सड़कें, बिजली और पानी पहुंच गए हैं। शहर की तरह की सुविधा घरों – घरों तक पहुंच गई है। अब इतनी सब सुविधाओं के बावजूद भी पलायन हो रहा है तो इसका सही कारण हम अब समझ सकते हैं, पहाड़ों से शहरों की तरफ पलायन आज हमारी मानसिकता और सोच बन चुकी है। हमारी सामाजिक हैसियत आज इसी से पहचाने जानी लगी है कि शहर में मकान है कि नही। हमने शहरों में रहने वालों को उच्च और पहाड़ों में रहने वालों को निम्न कोटि की तरह व्यवहार करने वाली सामाजिक मानसिकता बना ली है। हमने खुद भी और समाज ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि शहर वालों की हैसियत पहाड़ वालों से ज्यादा है और जिसकी देखा देखी कर हर कोई पहाड़ से पलायन कर शहरों में आकर रहना चाहता है। पलायन का एक और कारण ये भी है कि हम अपनी मातृभाषा को लगभग भूल चुके हैं या जिनको आती है वो बोलने में शर्म करते हैं। दूसरों की भाषा बोलने में हमे गर्व होता है और अपनी भाषा को बोलने में शर्म महसूस होती है। भाषा को खोना अपनी पहचान खो देने के समान है हम अपनी भाषा तो ही खो रहे हैं और भाषा के साथ साथ अपने पहाड़ भी। आज पहाड़ आग से भी धू-धू कर जल रहे हैं। जिसके कारण सूखा पड़ रहा है जैसे खेती पहले हो पाती थी वैसी खेती अब नही हो पा रही है। अगर हम इस बात का आंकलन सही मायने में करें तो पहाड़ो में माचिस की तीली से आग लगाने वाला जितना इसके लिए जिम्मेदार है उससे ज्यादा चीड़ के पेड़ जिम्मेदार हैं। चीड़ के पत्तों में आग पेट्रोल में लगी आग की तरह फैल जाती है जो पूरी हरियाली को तहस नहस कर राख कर देती है। हमें चीड़ के पेड़ों का बहिष्कार करना चाहिए क्योंकि चीड़ के पेड़ से न सही मात्रा में ऑक्सीजन मिल पाती है और न ही वो घास के काम आते हैं और न ही उसके आस पास कोई और पौधे पनप पाते हैं इन पेड़ों के आसपास पानी का स्तर भी बहुत नीचे चला जाता है इन चीड़ के पेडों के कारण हुए सूखे से त्रस्त लोग पलायन का रास्ता अपना लेते हैं। अगर वाकई हमे पलायन की समस्या से निपटना है तो हमे अपनी सोच को पहाड़ो के प्रति सकारात्मक बनानी होगी। हमारी सकारात्म सोच ही पलायन से बाहर हमे निकाल सकती है। अगर ज्यादा से ज्यादा लोग पहाड़ों में रहने लगेंगे तो अवश्य ही वंहा रोजगार बढेगा। ज्यादा लोग रहेंगे तो वंहा सरकार भी बुनियादी सुविधाएं ज्यादा करने पर ध्यान देगी। वहां शिक्षा का स्तर और भी ऊंचा हो पायेगा और ज्यादा लोग होंगे तो स्वास्थ को लेकर भी कई उच्चस्तरीय प्राइवेट हॉस्पिटल और स्कूल भी खुलेंगे। हमे अपने पहाड़ों से पलायन को रोकना है तो हमे शिमला, कुल्लू और मनाली जैसी जगहों से सीख लेने की आवश्यक्ता है। उन्होंने अपने क्षेत्र में हमेशा वंहा के मूल रूप रहने वाले पेड़ पौधों का वृक्षारोपण किया है ताकी हरियली और मौसम ठंडा रहे और पर्यटक भी उनकी तरफ आकर्षित हों। मूल पेड़ जैसे बांज और बुरांस के वृक्षों से पानी भी भरपूर मात्रा में मिलेगा जिसे सूखे पड़े खेतों में भी फिर से हरियाली लहलहा उठेगी। हमें अपने आप मे दृढ़ निश्चय करके हरियाली को लाकर पलायन को बहुत दूर भगाना होगा। अगर हम ये सब कर पाए तो एक दिन हमारे पहाड़ पर्यटन का ऐसा माद्यम बनेंगे कि यंहा हर प्रकार का रोजगार होगा सुविधाएं और शिक्षा के लिए लोग आने के लिए लालायित रहेंगे तब किसी को भी नौकरी करने बाहर नही जाना पड़ेगा बल्कि लोग हमसे नौकरी मांगने पहाड़ में आएंगे पलायन पहाड़ो से से मैदानों को नही मैदानों से पहाड़ो को होगा। आओ हम सब मिलकर पहाड़ों की ओर रुख करें और उन्हें हराभरा और सभी सुविधाओं से सम्पन्न बनाकर पहाड़ो से हो रहे पलायन को रोकने में अहम योगदान करें।

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-राज बिष्ट

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