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मेजर कौस्तुभ राने

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जी चाहता है मेरा
नापाक हस्ती तेरी मिटा दूँ
जिहादिस्तान (पाकिस्तान) का नक्शा
धरती से हटा दूँ
कह दूँ मेजर की पत्नी
मेजर के नाम का टीका
माथे पर तू सजा ले
जिहादिस्तान की राख से
तिलक ज़रा लगा ले।
बहना मेरी सुन ले
आँसू न एक ढहाना
दर्द के दरिया को
आँखों से तू पी जाना।
पीढ़ियों से कह दे
पीढ़ियों ने भोगा
सुलह की हर पहल पे
पीठ पर हर बार घाव देखा।
सरहद पर शहादत के
आँसू बन के अँगारे
जलाकर खाक कर देंगे
जिहादिस्तान के जिहादी सारे।
सरहद पर
जिहाद के बादल
पल-पल जो आग बरसाते
कट्टर इस्लाम के दिल का
पल-पल हाल बतलाते
अरे! सुधरो
मौत का बाजार सजाने वालो
भारतीय जाबाज़ों की शहादत पर
इतराने-इठलाने वालो।
तुम्हारे मज़हब की तबियत का
एक दिन शर्तिया इलाज होगा
उसी दिन तेरा वजूद नक़्शे से
हमेशा-हमेशा के लिये सुपुर्द-ए-ख़ाक होगा।

Virendra Dev Gaur (Veer Jhuggiwala)

Chief Editor (NWN)

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