गंगा मइया बहती जाए
बद से बदतर होती जाए
पाप हमारे धोती जाए
ज़हरीले औद्योगिक रसायन सीवर नाले-खाले
नीलकंठ बनी सब पीती जाए
मोटा पैसा जब-तब मइया के उद्धार को आए
हर-हर गंगे कहकर बंदरबाँट में खप जाए
गंगा मइया के जिम्मेदार बेटे-बेटियाँ बेहया हाए
बीमार गंगा मइया को इलाज के लिये तरसाए
मुर्दों की राख को माँ गंगा में बहाए और इतराए
फिर गंगा की आरती में शामिल हो जाए
माँ गंगा की आँखों में तू धूल झोंकता ही जाए
माँ गंगा पर तुझे ज़रा भी तरस न आए
वेदों उपनिषदों श्रीमद्भगवद्गीता के शाश्वत संदेश तू हवा में उड़ाए
उत्तर भारत के प्राण ‘‘गंगा-यमुना-परिवार’’ तिल-तिल कर मिटता जाए
गौमुख रेगिस्तान बनता जाए ग्लेशियरों पर भयानक संकट मँडराए
ग्लेशियर झीलों का फट-पड़ना हमें समझ न आए
केदारनाथ विध्वंस का दर्दनाक इतिहास हमें सबक सिखा न पाए
मूर्ख हमने हमसे बड़ा नहीं देखा हाए
माँ गंगा और माँ जमुना तुम दोनों को भी राम भरोसे छोड़ दिया देश ने चाहे-अनचाहे ।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor (NWN)
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