
गंगा बोली
यमुना बोली
दो शरीर एक जान हैं हम
उत्तराखंड-हिमालय की कोख से निकलकर
उत्तर भारत की माटी में जान डालकर
जन-जन को खुशहाल बनाकर
सबके दुख-दरिद्रता दूर कर
इलाहाबाद में गले मिल पाती हैं हम।
गंगा बोली
यमनुा बोली
लाखों-करोड़ों बच्चों की माँ हैं हम
लाड़ प्यार दुलार में हम दोनों
नहीं रहे कभी किसी से कम
समझ नहीं आता किसके दुष्कर्मों से
एक-एक कर तोड़ रही हैं हम दम।
गंगा बोली, मुर्झाती-मरती यमुना बहनी
भारतीयों की अजब है कथनी-करनी
कभी बहती थी तू कल-कल छल-छल
अब बनती जा रही जगह-जगह तू दलदल
याद कर द्वापर युग में किसना को
तब कालिया नाग ने ज़हरीला बना दिया था तुझको
किसना तुझे माई कहते थे
तेरी लहरों में बंशी की तान घोल दिया करते थे
अब तो तेरे बच्चे ही बन बैठे कालिया नाग
जिन्होने तेरे शरीर को विकलांग बना दिया ।
यमुना बोली गंगा दीदी
मेरी तो अब मौत अटल है
पर तेरा भी हाल बुरा है
तेरे फेफड़ो में भी ज़हर भरा हैे
कभी था तेरा पानी अमृत
सदियों से करती आ रही जग का हित
पापियों के पाप हरते-हरते तू खुद हो गई ज़र-ज़र
तेरे बिना भारत की कल्पना से मन काँप रहा मेरा थर-थर ।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor (NWN)
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