हृदय में कवि बसता है
खाकी में शरीर रहता है
हृदय और शरीर के रिश्ते में
मन जिस हलचल में रहता है
कुरुक्षेत्र के हृदय में ही
गीता का ज्ञान पनपता है
समय सबको परखता है
ऐसे में जो क्षमता है
वह विषमता की ही कविता है।
महाराज आज रक्षाबंधन पर
इस नादान कवि का दिल कहता है
नारी सुरक्षा पर पुलिस आपकी
ठोस अगर कुछ कर गुजरे
बैठा दीजिए चप्पे-चप्पे पर यों पहरे
महिलाओं पर हो रहे अपराध गहरे
नारी सम्मान और सुरक्षा सबसे ऊपर ठहरे
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को अर्थ दे दीजिए सुनहरे
असंभव सा काम पर यह उम्मीद से नहीं परे
हरे राम हरे कृष्ण राम-राम हरे-हरे।
Virendra Dev Gaur (Veer Jhuggiwala)
Chief Editor (NWN)