
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
नर्क बना सकते हैं
नर्क बना रहे हैं
हम मिलकर
नर्क बना रहे हैं
स्वर्ग सी अपनी धरती को
हम नर्क बना रहे हैं।
शिखरों पर बैठे न्यायालय
अनैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं
कुदरत से शिक्षा हरगिज़ न लेना
विधिवत सिखा रहे हैं।
पति-पत्नी को
रावणता का ज्ञान सुझा रहे हैं
राम-सीता को
भारत के मन से
दूर भगा रहे हैं।
राजनीति में साधू बनकर
रावण घूम रहे हैं
भगवती जैसी सीता माता को
छल-बल से हर रहे हैं।
कुनीति-कदाचार का दुर्योधन
लोकतंत्र के केश खींच रहा है
लोकतंत्र की द्रोपदी चीख रही है
किन्तु संविधान भीष्म बना
मुँह लटकाए मौन बना बैठा है।
हाकिम हकीम और अफसर मिलकर
इन्द्र की सभा रचा रहे हैं
सोमरस के प्याले छलक रहे हैं
रंभा को नचा रहे हैं।
भोगी लम्पट कामी कामुक मिलकर
संन्यास भाव को ढोंगी बता रहे हैं
सुबह-शाम कसमें खा-खाकर
खुद को तपस्वी जता रहे हैं।
नारी देह का व्यापार
धड़ल्ले से फल-फूल रहा है
नारी की इज्जत का ढोलक
ऊँचे स्वर में दमा-दम ढमा-ढम गूँज रहा है।
-इति
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