सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
खंडूड़ी और निशंक
बताए जा रहे
छोटे अखबारों के बड़े हमदर्द
छोटे अखबार वाले सुना रहे
रह-रह कर अपना दर्द
लम्बे समय से चला आ रहा
विज्ञापन का मौसम सर्द
हम नहीं खुदगर्ज
किन्तु सरकार की मनमानी है
हमारा जायज दर्द।
अरे है कोई ऐसा मर्द
जो सरकारी विज्ञापनों की तिलिस्मी दुनिया में
हातिमताई बनकर उपस्थिति कराए अपनी दर्ज
सरकार को देना नहीं हमारा कर्ज
किंतु भेदभाव से ऊपर उठकर
निभाए सरकार अपना फर्ज।
सरकारी विज्ञापनों की दुनिया में
लूट-खसोट का राज करो बन्द
विज्ञापन का चलन खत्म करो
या विज्ञापन की राजनीति खत्म करो
दोनों का चोली-दामन का साथ
अवसरवादी मार रहे हैं लम्बे हाथ
सीधी-सच्ची हमारी बात
निष्पक्ष विज्ञापन नीति की करो शुरुआत
बड़े-छोटे का भेद मिटाओ
छिछोरापन और लम्पटता से बाज आओ
अरे! कहीं तो आदर्श स्थापित करो
ऊपर वाले की बे-आवाज़ लाठी से डरो।
-इति