सूर्य मंदिर का नाम सुनते ही हमारे सामने कोणार्क के सूर्य मंदिर की छवि बन जाती है, पर ऐसे ही दो सूर्य मंदिर और हैं जिनमे से एक कटारमल अल्मोड़ा में स्तिथ है तथा दूसरा पलेठी टिहरी गढ़वाल में। और मैं जिस सूर्य मंदिर के बारे में लिख रहा हूँ वो है टिहरी गढ़वाल की देवप्रयाग तहसील के ब्लॉक हिंडोलाखाल से 10 किलोमीटर की दूरी पर पलेठी गांव में स्तिथ । यह एक प्राचीन सूर्य मंदिर। मान्यता अनुसार 7वीं-8 वीं शताब्दी की प्राचीन अवधि से संबंधित गढ़वाल में हिंडोलाखाल से 10 किमी दूर यह सूर्य मंदिर, लुलेरा गुलेरा घाटी में स्थित हैं। अगर हम स्थानीय लोगों पर विश्वास करते हैं, तो ग्रामीणों द्वारा खुदाई में मंदिरों का एक समूह मिला था। जिनमे एक यह सूर्य मंदिर तथा एक शिव मंदिर प्राप्त हुए थे। भारत मे कोणार्क और कटारमल के अलावा तीसरा सूर्य मंदिर यंही स्तिथ है। इस सूर्य मंदिर के पत्थरों पर कौन सी लिपि में लिखा गया है ये आज भी एक चर्चा और खोज का विषय है। कुछ पत्थरों पर पाया गया है कि इनपर ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है पर कुछ पर अभी स्तिथि स्पष्ट नही है भारतीय पुरातत्व विभाग के डॉ एसएन घई और डॉ के.वी. रमेश, ने 22 अक्टूबर 1968 को मंदिर के शिलालेखों का अध्ययन किया। महाराजाधिरराज परमेश्वर कल्याण वर्मन का नाम ब्रह्मी में संरचना पर एक प्रमुख उल्लेख पाया गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, सूर्य मंदिर 7वीं -8वीं शताब्दी के दौरान बनाए गए थे जब यह क्षेत्र ब्रह्मपुर के वरमानों के शासनकाल में था। अपने आप मे कई अनोखे राज समेटे यह सूर्य मंदिर पर्यटन और आध्यात्मिक दृष्टि से कई बड़ी संभावनाएं समेटे हुए है। इस मंदिर का डिजाइन अपने आप मे अलग और दुर्लभ है। आद्यात्मिकता और पर्यटन को साथ संजोने की दृष्टि से ये भारत की कुछ चुनिन्दा जगहों में से एक है। पलेठी में सूर्य मंदिर इस अर्थ में विशेष हैं कि ये दक्षिण भारतीय परंपरा से अलग है। इस सूर्य मंदिर के पास में एक और मंदिर स्तिथ है जो भगवान भोलेनाथ का मंदिर है जो श्री चमनेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है। दोनों मंदिर संस्कृतिक विरासत को संभाले हुए है किंतु सरकार और सरकारी मशीनरी के ढीले रवैये के कारण ये आज जिस जर्जर स्तिथि में है उसे गांव ही नही अपितु पूरे क्षेत्र के लोगो मे निराशा की भावना है उचित रखरखाव की कमी के कारण यह सूर्य मंदिर विलुप्त होने के कगार पर है। प्राचीन संरचनाएं जिनमें पुरातात्विक महत्व है, वे उचित रखरखावों न होने के कारण बर्बाद हो रहे हैं। आज इस मंदिर के पास में सड़क पहुंच गई है जिससे यंहा पहुंचना बहुत आसान हो गया है और इसके पुनः जीर्णोद्धार के लिए ज्यादा मेहनत की भी जरूरत नही पड़ेगी पर कोई भी सरकार या जिला प्रशासन इसकी सुध नही लेता है। अगर प्रशासन और सरकार इसपर ध्यान देते हैं तो भविष्य में हमारी इस महान धरोहर को एक बडे पर्यटन क्षेत्र के रूप में देखा जा सकता है। बस जरूरत है एक पहल की।
राज बिष्ट