
कोविड-19 की स्वास्थ्य सुनामी ने कई प्रकार की समस्याएं , सरकार तथा जनमानस के सामने, खड़ी कर दी हैं। इस संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के प्रयास में सरकार ने अभूतपूर्व लॉक डाउन किया जिससे लगभग 10 करोड़ कर्मी देश के विभिन्न स्थानों पर फस गए। केंद्र तथा राज्य सरकारें अपने निर्णय में संभवत ठीक रहे हो मगर मजदूरों तथा अन्य कर्मियों द्वारा अपने घर जाने की उत्कट इच्छा स्वाभाविक ही थी। उनके द्वारा अपने अपने घरों में वापस पहुंचने के प्रयासों को मानवीय दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए।
यदि उत्तराखंड के संदर्भ में कहा जाए तो हजारों लोग दूसरे राज्यों में तथा कुछ विदेशों में फंस गए थे। यहां में केवल उन लोगों की चिंता कर रहा हूं जो बेहतर रोजगार की तलाश में उत्तराखंड से बाहर की ओर गए थे। जब सरकार ने भील देते हुए लोगों को उनके गृह राज्य तक पहुंचाने का प्रयास किया तो पता चला लगभग 100000 लोग उत्तराखंड वापस आना चाहते हैं।
उत्तराखंड के जिन लोगों की किस्मत में आकर्षक नौकरियां हैं वह उचित समय पर वापस जाएंगे। परंतु एक बड़ी संख्या उन नौजवानों की है जो नगरों या महानगरों में छोटी मोटी नौकरियों में अपना जीवन खपा रहे हैं। मेरा मानना है कि ऐसे लोगों को अपने पैतृक गांव में विकल्प आजमाने चाहिए। अपमानजनक नौकरियों में टिके रहने के बजाय पैतृक स्थानों में नई संभावनाओं को जन्म देना उनके लिए, परिवार के लिए, उत्तराखंड राज्य के लिए तथा देश के लिए भी लाभदायक होगा। एक अन्य वजह है से भी खेतों और गांवों से जुड़ना आवश्यक लगता है। वर्तमान कोरोनावायरस मनुष्य जनित हो या प्राकृतिक , एक खतरा लगातार बरकरार रहेगा जिसके बारे में सरकारों , अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तथा जनमानस को सतर्क रहना होगा। प्राकृतिक वायरसों को नियंत्रित करने, रूपांतरित करने तथा अपनी सुविधानुसार हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए विशाल औद्योगिक संरचनाओं की आवश्यकता नहीं होती। इस दृष्टि से सोचा जाए तो भविष्य असुरक्षित महसूस होता है। कूटनीतिक व सामरिक भाषा में दुष्ट राज्यों तथा गैर राष्ट्रीय अदा करो जैसी संकल्पना मौजूद हैं। हमारे देश के आसपास तथा भीतर ऐसी संकल्पना ठोस रूप में मौजूद है जो भविष्य में इसी प्रकार के संकट बारंबार खड़े कर सकते हैं।
आज के समय में गांव का खेती से जुड़े ने की सलाह देने वाला व्यक्ति शत्रु वत लग सकता है परंतु यदि शांत भाव के साथ बातों को सुना, पड़ा तथा समझा जाए तो सभी पक्षों के लिए लाभदायक परिणाम सामने आ सकते हैं। उत्तराखंड राज्य वैसे तो कृषि के लिए बहुत लाभकारी नहीं माना जाता परंतु वस्तु स्थिति इसके विपरीत है। उत्तराखंड की जलवायु हमें कई प्रकार की संभावनाएं उपलब्ध कराती है। उत्तराखंड में आद्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु, शुष्क उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु शीतोष्ण जलवायु तथा अल्पाइन जलवायु उपलब्ध है। लेकिन जब कुछ लोग उत्तराखंड को खेती के लिए अनुपयुक्त कहते हैं तो उसमें सच्चाई का अंश अवश्य होता है। यहां की जलवायु तथा भौगोलिक स्थिति परंपरागत कृषि के बजाय वृक्ष खेती अर्थात बागवानी के लिए अधिक उपयुक्त है। उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों में सूक्ष्म अध्ययन करने पर पता चलता है कि यहां लगभग हर मौसम के फल उगाए जा सकते हैं! इस प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर कीवी, कीनू सेव, आडू, अखरोट , चेरी…. इत्यादि उगाए जा रहे हैं। प्रदेश के कई इलाके शहतूत के पौधे लगाने के लिए सर्वथा उपयुक्त पाए गए थे। राज्य में रेशम निदेशालय भी बना था यद्यपि वह अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। उत्तराखंड के विभिन्न जलवायु क्षेत्र भिन्न भिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयुक्त हैं। उदाहरण के लिए यहां मधुमक्खी पालन बड़े पैमाने पर किया जा सकता है! यहां के कुछ क्षेत्र खरगोश पालन के लिए बेहद उपयुक्त है। यह खरगोश बेहद मुलायम फर वा बाल उपलब्ध कराते हैं तथा बाजार में अच्छा पैसा मिलने की संभावना जगाते हैं। खरगोश पालन से संबंधित तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए एक केंद्र भी उत्तराखंड में कार्यरत है। इन संभावनाओं को, बड़े स्तर पर, वास्तविक धरातल पर लाने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार तथा निवासियों को मिलजुल कर प्रयास करने होंगे। यहां यह सोचना बेहद आवश्यक है कि लोगों ने कृषि कार्य को अलविदा क्यों कहा तथा उन्हें घटिया कार्य क्यों समझा? इसके लिए तथाकथित पढ़े लिखे लोगों के उलाहने तथा शिक्षा प्रणाली जिम्मेदार है। गांव में रहने वाले व्यक्तियों को गवार अनपढ़ तथा अज्ञानी कह -कह कर हीन भावना से ग्रसित कर दिया गया जिससे वे लोग नगरों तथा महानगरों में जाकर शोषित होने में अपनी शान समझने लगे। अब समय आ गया है कि इस हीन भावना से बाहर निकला जाए। भारत सरकार ने जो ऐतिहासिक लॉक डाउन किया उसे जो भी सफलता मिली वह गांवों की बदौलत ही सफल हो सकी! तथाकथित अनपढ़ तथा गवार लोगों के दम पर ही शहरी लोग सब्जी, फल तथा अनाज जैसे आवश्यक खाद्य पदार्थ आसानी से तथा उपयुक्त दरों पर पा रहे हैं। नौजवानों को कृषि संबंधित कार्यों में संलग्न करने के लिए तथा इस क्षेत्र में उत्तराखंड को सक्षम बनाने के लिए सरकार के संबंधित विभागों को अग्रगामी नीतियां बनानी होंगी तथा उन्हें सफलता से क्रियान्वित करने के लिए गांव तक पहुंचना होगा। लेकिन जन भागीदारी के बिना सरकारी प्रयास कभी भी सफल नहीं हो सकते। नौजवान अपने गांव में रुके तथा वहां वृक्ष खेती तथा विविध पशुपालन के कार्यों में संलग्न हो इसके लिए आवश्यक है कि वहां स्वास्थ्य तथा शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। इन दो मूलभूत सुविधाओं के मिलने पर नौजवानों को अपने पैतृक गांव में रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाना संभव होगा। यदि उत्तराखंड के लोग बागवानी खेती में दिलचस्पी लेने लगे तो उसकी सफलता के लिए बड़ी मात्रा में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना बेहद जरूरी होगी। खेतों तथा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को जुड़ने के लिए सड़क परिवहन का अच्छी स्थिति में होना आवश्यक होगा। आज के समय में गांव में रहने वाला व्यक्ति स्वयं को अज्ञानी कतई ना समझे, आज हर व्यक्ति की जेब में ज्ञान भरा पड़ा है। जब चाहो अपनी सुविधा, दिलचस्पी, आवश्यकता………इत्यादि के हिसाब से उस ज्ञान में डुबकी लगा सकते हैं तथा विश्व के साथ सतत संपर्क में रह सकते हैं। ज्ञान तथा दुनिया के साथ निरंतर संपर्क पर शहरी लोगों का एकाधिकार ध्वस्त हो चुका है।
surendra dev gaur