Breaking News
raj

खोने लगी भाषा गुम होने लगी संस्कृति

raj

(राज बिष्ट)

हरचण लैगी भाषा गुम होण लैगी संस्कृति। (खोने लगी भाषा गुम होने लगी संस्कृति)

जी हाँ ये एक पंक्ति ही अपने आप मे सबकुछ कह जाती है। आज उत्तराखंड की विलुप्त होती गढ़वाली और कुमाउनी भाषा उत्तराखंड की संस्कृति को भी विलुप्ति की दिशा में ले जा रही हैं। किसी भी संस्कृती की पहचान वहां की भाषा, वहां की वेशभूषा होती है। गढ़वाली और कुमाउनी उत्तराखण्ड की प्रमुख बोली जाने वाली दो भाषाएँ हैं किंतु आज ये दोनों भाषाएँ विलुप्ति की दिशा में अग्रसर हैं। आज की इस भागती दौड़ती जिंदगी में रोजगार और शिक्षा के अलावा भी अन्य कई कारणों से उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन अपने चरम पर है, जिस कारण से लोगो को पहाड़ो से शहरों की तरफ भागना पड़ रहा है। लोग पहाड़ो से शहर में आकर वहीं बस जाते हैं और वहां की वेशभूषा वहां की भाषा को ही अपना लेते हैं और यहां तक कि उनके बच्चों को अपनी मूल भाषा का ज्ञान भी नही होता है। इसी कतार में कुछ लोग वो भी हैं जो दिखावटीपन के लिए भी अपनी मूल भाषा नही बोलते हैं। और कुछ लोगों को अपनी भाषा को बोलने में शर्म भी आती है। इसी तरह से गढ़वाली और कुमाउनी भाषा बोलने वालों की संख्या में हर साल कमी आ रही है और इस कमी के कारण उत्तराखण्ड की महान विरासत हमारी महान संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। पुराने वक़्त में कौथिक (थौल), सामूहिक नृत्य, सामूहिक गान इस तरह से कई अन्य आयोजन हमारी भाषा और संस्कृति को संजोकर रखते थे और लोगो के बीच मे प्रेमभाव बनाये रखने में बेजोड़ थे। किंतु आज दो गढ़वाली आपस मे गढ़वाली में और दो कुमाउनी आपस मे कुमाउनी में बात नही करते। दूसरी भाषाओं को बोलने की होड़ लगी हुई है । अपनी भाषा में बात करने में शर्म महशूश करते हैं। जबकि हमें अपनी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए। हमारे अपने इस तरह के लोग हैं जो अपनी भाषा और अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। उनकी तुलना में कुछ लोग अभी ऐसे भी हैं जो आज भी देश या विदेशों में रहकर अपनी गढ़वाली या कुमाउनी भाषा को खुद भी बोलते हैं और अपने बच्चों को भी सिखाते हैं। यहां तक वो अपनी संस्कृति को अपने और अपने बच्चों के माध्यम से पूरे देश ही नही विदेश में भी प्रचार करते हैं।कई लोग इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। मेरा यह लेख किसी भी भाषा के खिलाफ नही है किंतु मैं ये कहना चाहता हूं कि आप अपने बच्चों को सब तरीके की भाषा सिखाऐं किन्तु अपनी गढवाली या कुमाउनी भाषा को सीखाना बिल्कुल न भूलें। अपनी भाषा को बचाये रखें अपनी संस्कृति बची रहेगी। हो सके तो अपने गावों में कुछ पारम्परिक रीति रिवाजों को फिर साथ मिलकर सामूहिक रूप से मनाएं। अपनी भाषा अपनी संस्कृति के मेल मिलाप को संजोकर रखें। क्योंकिं इतिहास गवाह है जिनकी भाषा खोई संस्कृति खोई उनका फिर नामो निशान भी मिट गया। आप जहां भी रहें किन्तु अपनी गढवाली और कुमाउनी भाषा के साथ – साथ अपनी संस्कृति को बनाये रखें बचाये रखें। अपनी मातृभाषा को बोलने में न हिचकें और न शर्म करें। अपनी भाषा अपनी संस्कृति पर गर्व करें। आज के इस आधुनिक युग मे हमे टेक्नोलॉजी और अपनी सांस्कृतिक धरोहर अपनी भाषा को साथ लेकर चलना होगा । त आवा अपणी भाषा अपणी संस्कृति तैं बाचौण का खातिर आज संकल्प करदा कि अपणी भाषा बोलला और अपणी संस्कृति तै दुनिया मा फैलोला। (तो आओ आज अपनी भाषा और संस्कृति बचाने के लिए आज संकल्प करते हैं कि अपनी भाषा बोलेंगे और अपनी अपनी संस्कृति को दुनिया तक फैलाएंगे) (राज बिष्ट)

Check Also

1

1

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *