श्री देवी के शव को तिरंगे में लपेटना
श्री देवी की अंतिम-विदाई को
राजकीय मान-सम्मान का दर्जा देना
किसी शूरवीर सैनिक की
सरहदों की हिफाजत करते वक्त
शहादत का मंजर याद दिला गया।
मेरे अन्दर बैठा कवि पशोपेश में है
मेरे भीतर बैठा पत्रकार हैरान है
मेरे वजूद का हिस्सा एक इन्सान परेशान है
लाखों भूमिपुत्र पिछले बीस सालों में
भ्रष्टाचारी बैंकों की हरकतों
पत्थर दिल अफसर शाही की करतूतों से
अपने स्वाभिमान की सरहदों की रक्षा करते हुए
अपने ही हाथों मर-मिटे
किंतु किसी को तिरंगा नसीब न हो सका
लाखों भूमि-पुत्र
राजकीय अपमान के साक्षी बने
उन्हे किसी ने गन-सैल्यूट से नहीं नवाजा
उन्हें राजकीय व्यवस्था ने इनसल्ट से नवाजा
श्री देवी ने ज़ाहिराना तौर पर परोक्ष रूप से सही
किंतु मदिरा के नशे में जान गँवाई
किंतु उन्हें उनकी लाजवाब अदाकरी
और उनकी मदिरा-नवाजी के लिये वह मिला
जो बड़े-बड़े देशभक्तों को भी नसीब नहीं होता
यह गणतंत्र के लिये अशोभनीय है।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor(NWN)