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थैल:- विलुप्त होती पहाड़ की संस्कृति की धरोहर थैल (मेला) को पुनर्जीवित करने के लिए आगे आए सामाजिक कार्यकर्ता व ग्रामीण लोग, कहा थैल हमारी पहाड़ की संस्कृति की धरोहर थी, है और रहेगी

 

चाका, 22 अप्रैल
डीएस सुरियाल

पहाड़ की संस्कृति की धरोहर की पहचान देने वाली वैशाख यानी कि अप्रैल माह में क्षेत्र में जगह-जगह लगने वाले थैल (मेले) कई वर्षों से विलुप्त होते नजर आ रहें हैं। यह थैल हमारी संस्कृति की धरोहर थी। जिसे एक बार फिर से क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं व अन्य लोगों ने विलुप्त होने की कगार से बचाकर पुनर्जीवित करने की ठानी और क्षेत्र में लगने वाले इन थैलों का आयोजन शुरू कर दिया हैं। जिससे महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों में खुशी का माहौल देखा जा रहा है।

टिहरी जनपद के कई गांवों में प्राचीन समय से ही थैलों का आयोजन किया जाता रहा है। इन थैलों में जहां बच्चों को छोटे-छोटे खिलौने खरीदने का मौका मिलता था वहीं महिलाओं को भी जलेबी, पकोडी व अपना सामान खरीदने के साथ-साथ अपने चित्र परिचितों से मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त होता था। वहीं चर्खी का आनन्द भी लेते थे। मगर इस आधुनिक युग की चका चांद में यह थैल धीरे-धीरे विलुप्त होते नजर आ रहे हैं। क्षेत्र में लगने वाले इन थैलों का आयोजन कई वर्षों से ठप्प पड़ा हुआ है।


गजा तहसील के अंतर्गत पट्टी क्वीली, पालकोट क्षेत्र में वैशाख यानि कि अप्रैल माह में सुरी, पोखरी, गुरियाली, दिग्वाली, कांडी़, सौण्ड़ी, लवा सहित अन्य जगहों पर प्रचीन समय से ही पहाड़ की संस्कृति की धरोहर थैलों का आयोजन किया जाता था। मगर इस आधुनिक युग की चका चांद में आज यह थैल पूरी तरह से विलुप्त हो गये हैं। इनके विलुप्त होने से जहां हमारी नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति की धरोहर थैलों की पहचान नहीं हो रही है वहीं जहां पर इन थैलों का आयोजन किया जाता था वह जगह भी वीरान पड़ी हुई है।


मगर अब कुछ लोगों ने इस पीड़ा को समझते हुए अपनी इस पहाड़ की संस्कृति की धरोहर थैलों को एक बार फिर से पुनर्जीवित करने की कवायत शुरू कर दी है। सामाजिक कार्यकर्ता व पूर्व प्रधान रणाकोट यशपाल सिंह रावत की पहल पर सामाजिक कार्यकर्ता राजेश रावत, भगवान सिंह रावत, मंगल सिंह रावत, धर्म सिंह रावत, शेर सिंह रावत, विलोर सिंह रावत, दर्मियान सिंह रावत, उमेद सिंह रावत, राजेन्द्र सिंह पंवार के साथ ही बड़ी संख्या में महिलाओं ने आगे आकर एक बार फिर से इन विलुप्त होते थैलों को पुनर्जीवित करने की ढानी और 5 गते बैशाख सुरी व 8 गते बैशाख दिग्वाली के थैल का आयोजन किया। इस अवसर पर जहां बच्चों व महिलाओं ने थैल में खिलौने, जलेबी, पकोडी व अन्य सामान की खूब खरीदारी की वहीं सभी ने गढ़वाली वाद्ययंत्र ढोल व नगांरे में जमकर ठूमके लगाए (खूब नाचे) । सभी लोगों ने एक स्वर में कहा कि आगे भी इन थैलों का आयोजन भव्य रूप से किया जाएगा। कहा कि पहले से ही थैलों के आयोजन का खूब प्रचार प्रसार किया जाएगा। कहा कि थैल हमारी पहाड़ की संस्कृति की धरोहर है, थी और रहेगी। इसको बचाने के लिए हम सभी एकजुट होकर काम करेंगे।

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