सच्ची पत्रकारिता है लोकतंत्र का ठोस आधार
काँटों का रस्ता है भइया
काँटों का गहना है
सोए-सोए जगना है भइया
जगे-जगे सोना है
न हमको रोना है भइया
न हमको हँसना है
न हमको डरना है भइया
न हमको डराना है
हमारे लिए तो यह
हर मौसम का तराना है
पुलिस भले ही ऊँघ ले भइया
हमको तो ऊँघना भी मना है
हमें तो माँ भारती ने भइया
चौकस रहने को जना है
आँधी देश विरोध की उठे तो
उसे चीर आगे बढ़ना है
पर्वत आ खड़ा हो तो
उसे लाँघ जाना है
शोलों की तकिया पर सर रखकर भइया
अंगारों की शय्या पर लेटना है
आफत आ जाए कैसी भी
हरगिज नहीं पीछे हटना है
सीमा पर खड़े सेना के सिपाही बनकर
नजरें दुश्मन पर गड़ाए रखनी हैं तनकर
राष्ट्र का दुश्मन ही हमारा दुश्मन है
लहू में अगर देशप्रेम की ज्वाला है भइया
तो ही सच्ची पत्रकारिता सम्भव है
अन्यथा तो भइया औपचारिकता का वैभव है
देशप्रेम की माया से बढ़कर
नहीं कोई ठंडी छाया है
हमें मिली जो काया है
वह सब देश से ही तो पाया है
इसलिए सन्तों ने फरमाया है सरकार
सच्ची पत्रकारिता का क्या कहना
यह तो राष्ट्रप्रेम की धारा में है बहना
तिनका भर भी राष्ट्र-विरोध
सहा न जाए जब भइया
पत्रकारिता तब ही मानी जाए भइया
—और ऐसा ही नर या नारी है सच्चा पत्रकार
ऐसे नर-नारियों की जय-जयकार
पत्रकारिता के अवसरवादी संतुलन को है धिक्कार
लिहाजा, भइया अर्नब चमकाते रहो अपनी धार
तक वाले हों या झक वाले इनके बस का नहीं है आर-पार
चलने दो इनको बन्धु बनकर बीच वाला पत्रकार
विरोधी खाते हैं तो खाने दो उनको खार
राष्ट्रप्रेम ही पत्रकारिता का होता बन्धु सबसे पावन आधार।
धन्यवाद। सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, देहरादून
(ई ग्राम स्वराज पोर्टल के श्री गणेश के लिए उत्तराखंड सहित छह राज्यों को बधाई)
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