सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
उत्तराखंड सड़क परिवहन तंत्र के मुखिया जी
हमें एक सरकारी परिचालक भाई ने अपना दुखड़ा सुनाया
तीन माह से वेतन नहीं मिला ऐसा बताया
नई-पुरानी, सस्ती-मँहगी बसें खाक छानती फिर रही हैं
पहाड़ की ऊँची नीची सर्पीली सड़कों पर
किन्तु सवारियों का भारी है टोटा समझाया
सिटी बसों की तरह पाँच-पाँच दस-दस किमी के पैसिंजर
तलाशते फिरते हैं हम टिकट निपटाने को
घाटे में डूब रहा विभाग उतारू है हमें रुलाने को
इससे भी बुरा हाल है प्लेन्स में दौड़ रही बसों का आपको बताने को
तरस रही हैं खुद का तेल का खर्चा उठाने को।
विभाग जी का अरमान है
अपने पैरों पे खड़ा हो जाएं
सरकार का फरमान है
वोट की खातिर बिना सवारी के बसें दौड़ाई जाएं
परिचालक महोदय कहते हैं आप ही बताएं
हम जाएं तो कहाँ जाएं
क्या खाएं क्या बच्चों को खिलाएं।
सरकार जी मेरे यार
गैर-सरकारी वाहनों की सड़कों पर है भरमार
पब्लिक आपके खाली-खाली वाहनों से इम्प्रेस नहीं होगी सरकार
समय पर वेतन नहीं देने से बढ़ता है भ्रष्टाचार
विभाग की कलई खुलती रही है बार-बार
विभाग के अफसर नहीं रहे सरकार जी होनहार
क्या सरकारी बसों का संचालन सीखने के लिए भी भेजोगे
जनता-जनार्दन के खर्चे पर अफसरों-नेताओं को यूरोप या जापान के द्वार
मैनेजमेंट का कोई तो उदाहरण पेश करो सुस्ता रही राज्य सरकार
पब्लिक पहनाएगी अगली बार तभी तो आप को जीत का सुनहरा हार।