
जीवन में देखे हैं बुझे-बुझे दीपक, नाम वाले हमने अनके
जिलाधिकारी हरिद्वार के रूप में रोशन, दीपक काम वाले बस एक।
मेहनतकश और ईमानदार लोग, खुश हैं जिलाधिकारी पाकर नेक
सकपकाए बैठे हैं बाबू-अफसर, जो भ्रष्टाचार की आग रहे हैं सेक।
महकमा कोई भी हो भला, छिपोगे जाकर जो डाल-डाल
नहीं मिलेगी आड़ कहीं, दीपक जी खंगाल डालेंगे पात-पात।
गारा-माटा रोड़ी-बजरी में देख अंधाधुंध, कालाबाजारी के उम्दा खेल
सोना-चाँदी बनाया सफेदपोश और बिचौलियों ने मिलकर, देश की निकाल दी रेल।
गरीबों-लाचारों के हक़ की दवाईयाँ, स्मगलिंग की चढ़ गईं भेंट
सरकारी अस्पतालों के भ्रष्ट डॉक्टर-फार्मासिस्ट, दिखा रहे हैं गरीब मरीजोे को ऐंठ।
गंगा सफाई हो या अस्पताल की सफाई, खाने को आतुर कर्मचारी अधिकारी पाई-पाई
बहती गंगा में हाथ धोने वाले सब भाई-भाई, सुस्ती बेईमानी टाल-मटोल और चौतरफा लापरवाही।
दीपक साहब आप जहाँ-जहाँ करते हैं बिजली की फुर्ती से छापेमारी भारी
कुछ देर बाद अपने पुराने रंग ढंग में आ जाते हैं सब बहुत तगड़ी है बीमारी।
प्रधान के बस्ते से लेकर बंधु, प्रधानमंत्री के कार्यालय तक
टोह में रहते हैं सरकारी अफसर-बाबू, भ्रष्टाचार की कैंची चलाने को।
बहरहाल आपके काम करने का अंदाज बहुत राहत देता है
मुंशी प्रेमचन्द जी के नमक का दारोगा सी आहट देता है।
श्री राम के पवित्र-धाम चरणों से मेरी प्रार्थना है मान्यवर
भ्रष्टाचारियों को दो पैरों का घोषित कर दिया जाए हिंसक जानवर।
खटता है रोज-रोज पल-पल दिल यह सोच-सोचकर बड़े मियाँ
क्यों नहीं हो जाते आप जैसे सब आई ए एस क्योंकि लाचारों पर ही गिरती है भ्रष्टाचार की बिजलियाँ।
Virendra Dev Gaur (Veer Jhuggiwala)
Chief Editor(NWN)