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चुनाव से पहले हो रही शादियों पर भी चुनाव आयोग की पैनी नजर

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बीपीएल परिवारों के लिए मुसीबत
बेंगलुरु । कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही 27 मार्च को आदर्श चुनाव आचार संहिता लग गई। उम्मीदवारों के खर्च पर नजर रखने के साथ ही अब राज्य में चुनाव से पहले हो रही शादियों पर भी चुनाव आयोग की पैनी नजर है। कर्नाटक में अप्रैल और मई शादी के लिहाज से पीक सीजन है। खास तौर पर आयोग के अधिकारियों की ऐसी शादियों पर निगाह है, जिनमें राजनेता और उनके समर्थक शामिल हो रहे हैं। इसकी वजह भी है। अक्सर ऐसी शादियों में नेता अपने वोटरों को मुफ्त उपहार भी बांटते रहे हैं। वहीं, गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों की शादी में नई मुसीबत खड़ी हो गई है।  कर्नाटक के मुख्य चुनाव अधिकारी के दफ्तर के एक अधिकारी ने बताया, मैरिज और कम्यूनिटी हॉल चलाने वालों को हमसे ऐसी शादियों के बारे में पहले से इजाजत लेनी होगी, जिनमें नेता शामिल हो रहे हैं। कई बार राजनेताओं की ओर से गरीब तबके के लोगों के लिए सामूहिक विवाह कार्यक्रम आयोजित कराए जाते हैं। ऐसे आयोजनों में हजारों लोग इक_ा होते हैं। इस दौरान मेहमानों को बडूटा (मांसाहारी भोजन का प्रकार), मुफ्त शराब और घरेलू सामान बांटे जाते हैं। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) ने अपने उम्मीदवारों को ऐसे आयोजनों से दूर रहने की सलाह दी है। क्योंकि ऐसे मामलों में चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक पार्टी में होने वाले खर्च को प्रत्याशी के चुनाव प्रचार खर्च में जोड़ देते हैं। विधानसभा चुनाव में एक उम्मीदवार के लिए खर्च की सीमा 27 लाख रुपये है। इन सबके बीच एक दूसरा पक्ष यह है कि गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) वाले परिवारों की शादी में मुसीबत खड़ी हो गई है। अधिकारियों ने आचार संहिता की वजह से समाज कल्याण और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के फंड जारी करने पर रोक लगा दी है। विभाग की ओर से गरीब परिवारों को बेटी की शादी के लिए 50 हजार से एक लाख रुपये मुहैया कराए जाते हैं। इस योजना के तहत विधवा विवाह भी होते हैं। आपको बता दें कि कर्नाटक में विधानसभा की 224 सीटों के लिए 12 मई को मतदान है, जबकि वोटों की गिनती 15 मई को होगी।

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