मजहब-ए-इस्लाम की ज़मीन में जिहाद की रूह क्यों है जा बसी
मुल्लों मौलवियों की अमनपरस्ती पर डींगे सुनकर क्या खूब आती है हँसी
छह सौ बरस भारत की रूह को करते रहे लहू-लुहान दिन-रात
आज भारत के मक्का अयोध्या पर बाबरी मस्जिद की करते हो बात
तुम्हारी क़ौम परस्ती की खातिर तुम खून-खराबे को रहते हो तैयार
हम भारती माँ की सन्तानें माँ के चरणों में सर कटाने को हैं बे-करार
छोड़ दे ऐ इस्लाम तू मेरी माँ भारती को बाँटना लूटना-खसोटना
तेरी फितरत जग ज़ाहिर है छोड़ दे कश्मीर पर हमारे धीरज को कचोटना
कश्मीर की असली सन्तानें ए जिहादी इस्लाम लाखों बेगुनाह कश्मीरी पंडित हैं
लानत है मेरे देश को कश्मीर से बेदखल पंडितों को मिल रही जो जिल्लत है
अयोध्या में राम का मन्दिर और कश्मीरी पंडितों की बा-इज्जत घर वापसी पर देश एकजुट हो जा
आठ सौ वर्षों के सुलगते इतिहास से सबक लेकर ऐ मेरे देश बेसुध अब तो जग जा
1947 से 1980 तक कश्मीर घाटी के ज़हन में कट्टर इस्लाम तुम जिहाद का बारूद बोते रहे
पंडित नेहरू से लेकर आज सोचहीन राहुल मौलवी जनेऊधारी तक सब क्यों सोते रहे
दुष्ट-बदचलन राजनीति पर मेरे नेताओ देश को मत वारो
वीर छाती तान कर कह रहा देश पर खुद को वारो ।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor (NWN)