होली के बहाने
हम मिलकर ठानें
ढूँढ-ढूँढ कर जात-पात की
होली हम जला दें
होली के बहाने
हम मिलकर ठाने।
सदियों-सदियों भुगता हमने
देश को खतरे में डाला हमने
ऊँच-नीच के काँटे बोकर
गुलामी के बोझे ढोकर
सोने की चिड़िया को खोकर
अपनों को मारकर ठोकर
आज का भारत पाया हमने
क्या खोया क्या पाया हमने
नहीं कभी यह सोचा हमने
राम-कृष्ण को झुठलाया हमने
सनातन संस्कृति को गँवाया हमने
मक्कारों फरेबियों को अपनाया हमने
महान हिन्दू संस्कृति को समय-समय पर
खूब स्वच्छ बनाया हमने
किंतु एक ही जड़ से उठकर
खुद को अलग-अलग रंगों में बाँटा हमने
भारत की धरा राम-श्याम की माटी
सोचो क्यों हमने यह बाँटी
आओ सब होली के बहाने
ढूँढ ढूँढ कर जाति-पाति अलग रीति की
होली हम जला दें
भारत को फिर एक बना दें।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor (NWN)