ऋषिकेश (दीपक राणा) । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने प्रदेश वासियों को हिमालय दिवस की शुभकामनायें देते हुये कहा कि भारत का उन्नत भाल हिमालय, भारतीय संस्कृति का रक्षक है। हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है, साथ ही जैव विविधता का अकूत भंडार भी है। हिमालय केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण है। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जल भंडारण का केन्द्र होने के साथ ही हिमालय की गोद में 240 मिलियन से अधिक लोग निवास करते हैं। हिमालय की घाटियों में उगाए जाने वाले भोजन से दुनिया के लगभग तीन अरब लोगों का पोषण होता हैं परन्तु आज जलवायु परिवर्तन एवं अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण हिमालय का अस्तित्व खतरे में है। पृथ्वी पर ’तीसरे ध्रुव’ के रूप में विख्यात भारत का रक्षक हमारा हिमालय दुनिया के आठ देशों में लगभग 3,500 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि हिमालय के गर्भ में भारतीय संस्कृति के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों और दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ का अपार भण्डार हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के साथ ही आयुर्वेदिक औषधियों एवं आयुर्वेदिक उद्योग का आधार हैं। हिमालय शुद्ध आक्सीजन और हरित पर्यटन के लिये पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षक करता है परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिमालयी क्षे़त्र के अधिकांश पर्यटक स्थल धीरे-धीरे कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होते जा रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी प्रभावित हो रही है।देवात्मा हिमालय हमारे राष्ट्र की उन अमूर्त संस्कृतिक धरोहर में से एक है जिसने भारत को गौरवान्वित किया है, हमारे पौराणिक ज्ञान और विज्ञान को अपने में समेट रखा है। हमारी भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाये रखा है। हिमालय हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का दिव्य स्रोत है। भारत की अधिकांश सदानीरा नदियों का उद्गम हिमालय की गोद से ही होता है। सच तो यह है – नो हिमालय, नो गंगा; हिमालय है तो हम हैं इसलिये हिमालय को स्वस्थ, समृद्ध और जीवंत रखन होगा और इसके लिये पहाड़ों पर पड़ी बंजर भूमि पर वृक्षारोपण करना होगा; हिमालय को हमें पुनः जड़ी-बूटियों से सजाना होगा, हिमालय की दालें, दलहन और पहाड़ी उत्पादों को बढावा देना होगा, उत्तराखंड के व्यंजन और उत्पादों को एक बाजार बनाना होगा। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि हिमालय, जल के साथ ऑक्सीजन का भी अपार भंडार है। यहां पर पीस टूरिज्म, ऑक्सीजन टूरिज्म, योग और ध्यान टूरिज्म को विकसित करना बहुत ही जरूरी है। इससे तन स्वस्थ और मन मस्त रहेगा। आज हिमालय से क्वांटम मेडिसिन का आह्वान होना चाहिये ताकि यहां का योग, ध्यान, प्राणायाम, आयुर्वेद पर पर और अधिक ध्यान दिया जा सके। आईये हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखने का संकल्प लें क्योंकि हिमालय हमारा स्पिरिचुअल लैण्ड है; आध्यात्मिक भूमि है।
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