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फेसवॉश भी फैला रहा है पलूशन

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कई देशों में इनके इस्तेमाल पर लगी है पाबंदी 

चेहरे पर फेसवॉश और स्क्रब का इस्तेमाल करने से भले ही निखार आ जाता हो, लेकिन इन प्रॉडक्ट्स में छिपे माइक्रोप्लास्टिक न सिर्फ वातावरण को प्रदूषित करते हैं बल्कि जलीय जीवों और इंसान की सेहत के लिए भी खतरा बन रहे हैं। भारतीय बाजार में बिकने वाले तमाम पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स की लैब टेस्टिंग में पाया गया है कि अधिकतर कॉस्मेटिक्स में नॉन-बायोडिग्रेडेबल माइक्रोबिड्स पाए जाते हैं जो पानी के जरिए जलाशय और समुद्र में पहुंचते हैं और फूड चेन से होकर इंसान के पेट तक पहुंच जाते हैं।
50 प्रतिशत फेसवॉश में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए
इन्वाइरनमेंट प्रोटेक्शन ग्रुप टॉक्सिक लिंक की स्टडी में यह बात सामने आई है। स्टडी के तहत भारतीय बाजार में मौजूद 16 कंज्यूमर ब्रैंड्स के 18 पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स की सर्टिफाइड लैब में टेस्टिंग की गई। इनमें से 50 प्रतिशत फेसवॉश और 67 प्रतिशत स्क्रब में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। इन्हें माइक्रोबीड्स के तौर पर भी जाना जाता है और दुनिया के कई देशों में इन पर पाबंदी है। माइक्रोप्लास्टिक या बीड्स आकार में 1 मिमी से भी छोटे होते हैं और इनमें त्वचा को रगडऩे, साफ करने या पॉलिश करने की खूबी होती है।
देश के हर कोने में मिल रहे हैं ऐसे प्रॉडक्ट्स
टॉक्सिक लिंक ने यह स्टडी पर्सनल केयर और कॉस्मेटिक केयर प्रॉडक्टस में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता लगाने के लिए की। इसके लिए ही दिल्ली से सैंपल लिए गए लेकिन यह ऐसे प्रॉडक्ट्स हैं जो देश के हर कोने में मिल रहे हैं और उनका भरपूर इस्तेमाल भी हो रहा है। टॉक्सिक लिंक ने इस रिपोर्ट के लिए दिल्ली से सबसे अधिक पॉप्युलर 18 प्रॉडक्ट्स लिए।
समुद्री जीव के साथ ही इंसान की सेहत को भी नुकसान
टॉक्सिक लिंक की चीफ प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर प्रीति महेश ने बताया, माइक्रोप्लास्टिक इतने सूक्ष्म होते हैं कि चेहरा धोने के बाद ये पानी के साथ सीधे ड्रेनेज में चले जाते हैं। रूटीन फिल्टरेशन सिस्टम इन्हें छान नहीं पाता और ये आखिरकार नदी, तालाब और समुद्र में पहुंच जाते हैं। वहां मछली जैसे जलीय जीव इन्हें खाद्य पदार्थ समझकर निगल जाते हैं और यह उनके डाइजेस्टिव सिस्टम को डैमेज कर देता है। उन्होंने बताया कि मछली, झींगा और अन्य सी-फूड के जरिए ये माइक्रोप्लास्टिक फिर इंसान के भीतर भी जा पहुंचते हैं। माइक्रोप्लास्टिक में मौजूद केमिकल पाचन तंत्र के साथ ही प्रजनन प्रणाली पर भी बुरा असर डालते हैं। हालांकि इंसानी स्वास्थ्य पर इनके सीधे प्रभाव को लेकर अभी स्टडी होनी बाकी है।
कई देशों में इनके इस्तेमाल पर पाबंदी लगी है
टॉक्सिक्स लिंक के डायरेक्टर रवि अग्रवाल ने कहा, माइक्रोबीड्स को दुनिया भर में पल्यूटेंट्स माना जाता है और कई देशों ने इन पर पाबंदी लगा रखी है, लेकिन भारत में पर्सनल केयर और कॉस्मेटिक्स बनाने वाली कंपनियां इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं। बीआईएस ने भी माइक्रोबीड्स को अनसेफ करार दिया है। कॉस्मेटिक्स के अलावा जिन उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक का इस्तेमाल होता है, उनमें डिटर्जेंट, पेंट, फर्टिलाइजर, पॉलिशिंग एजेंट्स, वॉल कोटिंग, नैपीज आदि शामिल है।

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