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कोरोना महामारी नियंत्रण और अमेरिका

donald trump09 जून 2020 के आंकड़ों के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में कोरोना संक्रमितों की संख्या 20 ,26 ,597 थी तथा 1,13,061 लोग इस महामारी के दंश से परलोक सिधार चुके थे। अब तक कुल कोरोना संक्रमित 213 राष्ट्रों एवं सम्प्रभुता संपन्न क्षेत्रों एवं 02 समुद्री जहाज़ों में संक्रमण एवं तदुपरांत हुई मृत्यु संख्या की दृष्टि से उसे प्रथम स्थान प्राप्त है। यह एक ऐसी अवांछित उपलब्धि है जिसकी कल्पना इतने विशाल एवं विकसित राष्ट्र ने कभी नहीं की होगी। इस घटनाक्रम का संतोषजनक पहलू मात्र यह है कि मृत्यु दर कुल संक्रमितों की संख्या का मात्र 5.58 % जो समस्त विश्व की औसत मृत्युदर 5 .67 % से कुछ कम है। अब तक वहां 7,73,505 लोग ठीक होकर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं जोकि कुल संक्रमितों की संख्या का 38.17 % है जोकि विश्व औसत 49.23 % से कम है। जहां तक भारत का प्रश्न है वह 2,67,249 संक्रमण के साथ छठे स्थान पर काबिज़ हो गया है जिनमें से 7478 भारतवासी स्वर्गवासी हो चुके हैं। भारत में मृत्यु दर 2 .80 % तथा ठीक होने की दर 48 .35 % है जोकि विश्व औसत से थोड़ी ही कम है. विशेषज्ञों का मानना है की मृत्युदर के कम होने एवं ठीक होने की अपेक्षाकृत अधिकता के पीछे बी. सी.जी. टीकाकरण है जोकि अनिवार्य रूप से सभी बच्चों को दिया जाता है। मृत्यु दर के हिसाब से भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका फ्रांस (18.94 %), बेल्जियम (16.18 %), इटली (14.43 %), यूनाइटेड किंगडम (14.1 2%), स्पेन(9.39 %) इत्यादि राष्ट्रों से बेहतर स्थिति में हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का जहां तक प्रश्न है उसे खेल सहित सभी क्षेत्रों में शीर्ष पर रहने की आदत है। ओलम्पिक खेलों में भी पदक तालिका में वह अकसर अव्वल रहा है । 2016 के रियो ओलंपिक में भी अमेरिका ने 46 स्वर्ण, 37 रजत और 38 कांस्य पदकों के साथ कुल 121 पदक जीतकर पदक तालिका में प्रथम स्थान प्राप्त किया था । वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने सकल घरेलू उत्पाद का 16.9% स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च कर भी प्रथम स्थान प्राप्त किया था जो कि प्रति व्यक्ति खर्च के हिसाब से $10,600 है, जो कि सूची में दूसरे स्थान पर स्थापित स्विटज़रलैंड की तुलना में बहुत अधिक है जिसने 7300 डॉलर प्रति व्यक्ति खर्च किया। उक्त उद्धरण संयुक्त राज्य अमेरिका का स्वर्णिम कल याद कराता है।
31 जनवरी 2020 को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में 20 जनवरी को कोविड -19 का पहला मामला सामने आया था। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प उस समय भविष्य से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे जब उन्होंने 22 जनवरी को घोषणा की कि, “मैं आगामी संकट से चिंतित नहीं हूँ।” क्योंकि उन्हें लगा कि स्थिति नियंत्रण में थी और आगे भी रहेगी। फरवरी भर उन्हें विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा आगामी संकट को भांपने हेतु चेताया गया किन्तु राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा इसे सिरे से नकार दिया गया । 31 जनवरी को उन्होंने घोषणा की कि चीन के साथ यात्रा प्रतिबंध कोरोना के प्रकोप को रोकने में पर्याप्त साबित होंगे किन्तु उनका यह परिदृश्य दोष पूर्ण साबित हुआ और 29 फरवरी को कोरोना के कारण पहली मौत आधिकारिक तौर दर्ज़ की गयी। महामारी विज्ञानियों और संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने अमेरिकियों से सामाजिक आयोजनों को रद्द करने और खुद को क्वारंटीन करने की अपील करना शुरू कर दिया। ज्यादातर अमेरिका वासी अपने राष्ट्रपति की तरह निष्फ़िक्र थे। यह महामारी पूरे देश में तीव्र गति से फैलती रही। संयुक्त राज्य अमेरिका का रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) अभी भी सुस्त चाल से कार्य कर रहा था तथा पूरे फरवरी माह में सिर्फ़ 500 से कम कोरोना के परीक्षण कर पाया। सरकार के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथनी फौसी ने यूएसए में कोविड -19 के परीक्षनों की कछुआ चाल पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की । विभिन्न राज्यों के राज्यपालों ने स्थति की गंभीरता को भांप कर चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता पर बल दिया किन्तु ट्रम्प प्रशासन के कान में जूं न रेंगी।
अब तक राज्य और स्थानीय नेताओं का धैर्य जवाब देने लगा और वे नेतृत्व हीनता को भरने के लिए आगे आए क्योंकि उन्हैं राष्ट्रपति और उनके विश्वास पात्रों पर भरोसा न रहा। राज्यपालों ने आपातकालीन कदम उठा कर विद्यालयों को बंद करने की घोषणा कर दी, महापौरों ने अनिवार्य तालाबंदी की और समुदाय के नेताओं ने सार्वजनिक कार्यक्रमों को रद्द कर दिया। निजी क्षेत्र भी संकट की गंभीरता को भांपते हुए संवेदनशील हो गया और इसी क्रम में बास्केटबाल, फ़ुटबाल की मुख्य स्पर्धाएं एवं अनेकों व्यावसायिक गतिविधियां रोक दी गईं । महामारी की तीव्रता ने अमेरिका के निर्णय तंत्र की धुरी व्हाइटहाउस को भी अपने आगोश में ले लिया । अब समय आ गया था डोनाल्ड ट्रम्प को यह आभास दिलाने का कि यह सूक्ष्म विषाणु उत्तर कोरिया के रॉकेट मैन किम जोंग-उन से भी अधिक शक्तिशाली है। फिर क्या था देर आये दुरुस्त आये कहावत को स्वयं पर चरितार्थ करते हुए ट्रम्प प्रशासन ने आनन फानन $ 1.3 ट्रिलियन प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की जिसमे , अमेरिकियों को सीधे भुगतान के तौर पर $ 500 बिलियन दिए गए । संयुक्त राज्य अमेरिका की दुर्दशा का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प के सभी तीन कोरोना सलाहकार जिनमे एलर्जी और संक्रामक रोगों के राष्ट्रीय संस्थान के निदेशक, डॉ. एंथोनी फौसी, रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के निदेशक डॉ. रॉबर्ट रेडफील्ड और खाद्य और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यूएसए (यूएसएफडीए) के आयुक्त स्टीफन हैन ने को क्वारंटीन कर लिया है क्योंकि वे व्हाइट हाउस की प्रवक्ता केटी मिलर के संपर्क में आए थे, जिनका हाल ही में कोरोना परीक्षण पॉजिटिव आया था। कोरोना संकट में दीर्घ कालिक लॉक डाउन के मद्देनज़र अमेरिका वासी अधीर और बेचैन हो रहे हैं हालांकि कि वे हर दिन बड़ी संख्या में अपने अमेरिकी साथियों को खो रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका की अत्यधिक विकसित स्वास्थ्य प्रणाली कोरोना की विभीत्सिका के प्रभाव में उखड़ गई है और कोरोना संक्रमण एवं हर दिन होने वाली अनेकों मौतों को रोकने में स्वयं को असहाय महसूस कर रही है।
दूसरी ओर भारत सरकार ने परिस्थिति की गंभीरता का समय पर संज्ञान ले कर ऐतिहासिक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का निर्णय लिया जिसने एक अरब पैंतीस करोड़ से अधिक लोगों को घर में कैद करके रख दिया । लॉक डाउन की सफलता हेतु हर संभव प्रयास किये गए जिनमें अनुनय विनय एवं कठोरता का समावेश किया गया। इन उपायों के फलस्वरूप भारत अब तक महामारी के व्यापक प्रकोप को नियंत्रित करने और संक्रमण की दर को धीमा करने में कुछ हद तक सफल रहा। इसके परिणाम स्वरुप सरकार को अपनी जीर्ण शीर्ण एवं मृतप्राय स्वास्थ्य व्यवस्था को पुनर्जीवित कर संभालने का अवसर प्राप्त हो गया। इस हेतु संवेदनशील भारतवासियों का सहयोग सराहनीय है जिन्होंने प्रधान मंत्री केयर फंड में इस संकट काल में दिल खोल कर दान दिया और अब तक करते आ रहे हैं । इन सब का परिणाम यह रहा कि सरकार ने आवश्यक चिकित्सा उपकरण जैसे कि कोरोना परीक्षण किट, पीपीई, सैनिटाइज़र, इमेजिंग उपकरण आदि की खरीद के अलावा क्वारंटाइन केंद्र और समर्पित कोविड अस्पतालोंकी व्यवस्था कर ली है ताकि स्थिति कभी भी बेकाबू न होने पाए एवं राष्ट्र में अराजकता का माहौल न बने । इस बीच सरकार ने स्वदेशी उद्योगों और स्टार्ट-अप्स का आह्वाहन कर उन्हें आवश्यक चिकित्सा उपकरण निर्माण हेतु प्रेरित किया ताकि अंतर्राष्ट्रीय निर्भरता कम हो सके। सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों जैसे डीआरडीओ, सीएसआईआर, बीईएल आदि ने व्यक्तिगत उपक्रमों के साथ मिल कर स्वदेशी चिकित्सा उपकरणों के निर्माण का बीड़ा उठा लिया है ताकि किसी भी आपात कालीन परिस्थिति से निबटा जा सके। स्वदेशी उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार की पहल प्रशंसनीय है। अब समय भारत वासियों के धैर्य परीक्षण का है। यदि हम सब सरकार द्वारा सुझाये गए स्वास्थ्य , स्वच्छता और सामाजिक दूरी सम्बंधित दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन करें तो भविष्य में स्थिति को नियंत्रित करने में सफलता प्राप्त कर कोरोना श्रृंखला को तोड़ने में सफल हो पाएंगे। संक्रमितों की संख्या में उछाल हमारी अनुशासन हीनता का परिचय दे रहा है। अत: समस्त भारत वासियों से यह अपेक्षा की जाती है की विषाणु के प्रभाव की समाप्ति तक संयम बना कर रखें एवं भविष्य की प्रगति में मददगार बनें।

लेखक- डॉ. प्रशांत थपलियाल
सहायक प्राध्यापक
आर्मी कैडेट कॉलेज
भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून

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