बागेश्वर (संवाददाता)। प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला बुरांश अब उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले रातिरगेठी की महिलाओं की किस्मत बदलेगा। यहां की महिलाएं अब पारंपरिक खेती के साथ ही इसका जूस भी बनाने लगी हैं। गर्मियों में इसकी बाजार में सबसे अधिक मांग रहती है। इन दिनों गांव की महिलाएं चारा पत्ती के साथ ही बुरांश के फूलों को भी जंगलों से तोड़कर ला रही हैं। कपकोट तहसील के उच्च हिमालयी क्षेत्र में बुरांश का फूल बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। हिमालय के नजदीक गांव होने के कारण यहां फूल का आकार भी अपेक्षाकृत बड़ा होता है। बाछम, बदियाकोट, सुराग, कर्मी उगिंया, खाती के अलावा रातिरकेठी गांव में इसकी सबसे अधिक पैदावार होती है। पहले यहां के लोग इसके उपयोग से अनभिज्ञ थे। कुछ सालों से उद्यान विभाग ने यहां की महिलाओं को बुरांश के फूल का जूस आदि बनाना तथा इसके उपयोग की जानकारी दी। रातिरकेठी की महिलाओं को इसके लिए दक्ष भी बनाया। इसके बाद इस गावं की अधिकतर महिलाएं बुरांश का जूस बनाने में जुट गई हैं। अब यह फूल उनकी किस्मत बदलने का काम कर रहा है। इन दिनों गांव की महिलाएं सुबह चार बजे जंगल को निकल जाती हैं। जानवरों के लिए चारा पत्ती के अलावा बुरांश के फूलों को भी तोड़कर ला रही हैं। फूल खराब न हो इसके लिए रिंगाल के ढोके का अधिक इस्तेमाल कर रही है। दिन में इन फूलों को साफ कर इसका जूस बनाकर बाजार में बेच रही हैं। गांव के पूर्व प्रधान विजय सिंह ने बताया कि कपकोट बाजार के अलावा बागेश्वर में उनके गांव की महिलाओं द्वारा बनाया गया जूस बिक रहा है। इसकी कीमत इस समय बाजार में 150 रुपये का एक बोतल बिक रहा है। हर परिवार से महिलाएं इस कारोबार में लगी हुई हैं।
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