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बकरी पालन से आय में इजाफा कर रहे किसान

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पौड़ी  (संवाददाता)। पर्वतीय क्षेत्रों में बकरी पालन पशुपालकों की आय सृजन का मजबूत आधार बन रहा है। बिखरी जोत, खेती को वन्य जीवों से हो रहे नुकसान के कारण किसान खेती और उद्यान गतिविधियों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में पशुपालन का धंधा आमदनी का जरिया बन रहा है। ऐसे भी पशुपालक है जो बकरी व्यवसाय को अपनाकर आमदनी में बढ़ोत्तरी करने लगे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकरत पशुपालक उदयपुरी बकरी ही पालते हैं। पौड़ी जिले के पोखड़ा और एकेश्वर ब्लाकों में संचालित उत्तराखंड विकेंद्रीकृत जलागम फेज-2(ग्राम्या-2) ने पशुपालकों को इस दिशा में आगे बढ़ाने का काम किया है। परियोजना क्षेत्र के पशुपालकों को बकरी पालन से उनकी आर्थिकी को मजबूत करने के लिए सिरोही किस्म की बकरियां दी गई। सिरोही और उदयपुरी प्रजाति में बकरी के भार में काफी अंतर होता है। सिरोही बकरियों का वजन उदयपुरी बकरियों से अधिक होने के कारण इन्हें मांस के रूप में बेचने या फिर सीधे बिक्री करन,े दोनों ही तरह से पशुपालक मुनाफे में रहते है। ग्राम्या परियोजना में इसी दूरदर्शी सोच के तहत 22 सिरोही बकरों से इसकी शुरूआत की गई ताकि बकरियों की नस्ल में भी सुधार हो जाए और पशुपालकों की आय में भी बढ़ोत्तरी यह धंधा कर सके। जब पशुपालकों ने इसमें रुचि दिखाई और उनकी तो परियोजना ने 40 बकरे और लाकर हितभागियों को दिए। इस योजना के तहत दोनों ब्लाकों में कुल 72 पशुपालकों को बकरियां दी गई। इसके लिए प्रतिपशुपालक 30 हजार की राशि दी गई। इससे पशुपालकों ने ं 4 बकरियों के साथ ही एक बकरा खरीदा और गोट फार्मिंग की शुरूआत कर दी। लटिबौ के पशुपालक लाल सिंह के पास जो बकरियां उनकी कीमत वर्तमान में ही करीब 60 हजार है। इसी तरह से दलमाना के पशुपालक कालीचरण ने 25 हजार कीमत की बकरियां बेच दी जबकि उनके पास अभी अभी 55 हजार की बकरियां है। गडरी के पशुपालक गणेश सिंह के पास 77 हजार की बकरियां हो गई है। परियोजना के उपनिदेशक अखिलेश तिवारी ने बताया है कि परिस्थितियों को देखते हुए हितभागियों की मजबूत आय सृजन की दिशा में नोडल विभाग की मदद से काम करते हुए बकरी पालन व्यवसाय को आगे बढ़ाने का काम किया गया है।

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