नई दिल्ली । तीन तलाक विधेयक को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ दायर की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सोमवार को दायर की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया। बता दें कि पिछले महीने फरवरी में मोदी कैबिनेट ने तीन तलाक को लाए गए अध्यादेश को बढ़ाने की मंजूरी दी थी। ये नया अध्यादेश जून तक लागू रहेगा, जिसके बाद अगर इस कानून को जारी रखना होगा तो दोबारा अध्यादेश लाना होगा. अन्यथा संसद से इसे पास कराना होगा। गौरतलब है कि तीन तलाक की प्रथा को मुस्लिम पुरुषों के लिए दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश को अब तक तीन बार जारी किया जा चुका है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) दूसरा अध्यादेश फरवरी 2019 में हस्ताक्षर किए थे। तीन तलाक की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाला विधेयक लोकसभा से पारित हो चुका है, यह विधेयक फिलहाल राज्यसभा में लंबित है। मौजूदा लोकसभा के भंग होने के साथ ही तीन जून को यह विधेयक भी समाप्त हो जाएगा। एक वर्ष से भी कम समय में इस अध्यादेश को तीसरी बार फिर से जारी किया गया है। गौरतलब है कि विपक्षी पार्टियों और समुदाय के कई नेताओं ने तीन तलाक बिल विधेयक पर आपत्ति जताई है और कहा है कि अपनी पत्नी को तत्काल तीन तलाक देने के बाद एक आदमी के लिए जेल की अवधि कानूनी रूप से अस्थिर है, लेकिन सरकार का दावा है कि ये विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय और समानता प्रदान करता है। इससे मुस्लिम महिलाओं को न्याय और बराबरी का हक मिलेगा. एक वर्ष से भी कम समय में तीसरी बार अध्यादेश जारी किया गया है। 3 जून को वर्तमान लोकसभा के विघटन के साथ यह बिल चूक गया था। मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अध्यादेश, 2019 के अनुसार तत्काल ट्रिपल तलाक के माध्यम से तलाक देना अवैध होगा और पति के लिए तीन साल जेल की सजा होगी।

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