सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
बैकुंठ धाम में विराजमान बापू
हे राष्ट्रपिता
आपको इहलोक की एक
रूह को कँपकँपा देने वाली
लोमहर्षक दुर्घटना की याद दिला दूँ।
अक्टूबर एक की समाप्ति
और
अक्टूबर दो के शुरुआती पाँच घंटों में
यानी आपकी जन्म बेला में
जब आधी रात करवटें ले रही थी
सन् 1994 की बात है बापू
तब सत्याग्रह के तहत
राज्य के आन्दोलनकारियों को दिल्ली ले जा रही
बसों को रोका गया रामपुर तिराहे पर
मातृ-शक्ति को घसीटकर निकाला गया बसों से बाहर
पुरुष शक्ति को डराया धमकाया और मारा पीटा
तब की मुलायम सरकार ने पुलिस से चलवाईं गोलियां
जैसे चंगेज खान और नादिरशाह दोनों उतर आए हों मैदान में
अहंकारी समाजवादी सरकार ने बर्बरता का नंगा नाच किया रात के वीराने में।
सरकारी बलात्कार-व्यभिचार का
रात की कालिख से लिखा गया प्रलयंकारी इतिहास
कांग्रेस की केन्द्र सरकार मानो दिल्ली में तमाशबीन बनकर
करती रही खड़े होकर रंगमंच जैसा क्रूर अट्टहास
जिन्दा है आज भी घायल-छटपटाती रोती-बिलखती आस
क्यों नहीं लगाई जा सकी सत्ता के भेजे दरिंदों को फँ।स (फांसी)।
तनतनाई नसें
ढीली पड़ गईं
लाल आँखें पीली रह गईं
आवेश भरे हाथ ठंडे हो गए
भिंची मुट्ठियाँ नरमा गईं
जोश-आक्रोश बिक गया
सरकारी छत्र-छाया में गई पहाड़ की इज्जत
इन्साफ की उठ रही गुहार को बैठा दिया गया
मुआवजों ओर नौकरियों की बौछार से सुला दिया गया।
आन्दोलन पर न्योछावर रहे हों
या आन्दोलन को गाली देते रहे हों
ऐसे बहुतों को आन्दोलनकारी का खिताब मिला
कुछ गिने चुने लोगों ने बदले में कोई सर्टिफिकेट नहीं लिया।
बापू ओ बापू
वहाँ ‘राम-कृष्ण’ प्रदेश में है एक सन्यासी की सरकार
यहाँ ‘बदरी-केदार’ प्रदेश में भी है अनुकूल सरकार
दिल्ली में है बड़े सीने वाले सन्यासी की सरकार
क्यों नहीं खड़ी की जा रही तब की समाजवादी सरकार
कटघरे में खींच लाओ ऐसी पापी मक्कार सरकार।
-इति