
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित- 
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
कृष्णा की मुरलिया की तान 
ब्रजमंडल से लाई पैगाम 
कुरुक्षेत्र की समर भूमि से
लाई दिव्य गीता का ज्ञान 
दिला रही हम भारतीयों को ध्यान 
कहाँ गई हमारी कुशलता हमारा ज्ञान-विज्ञान।
कब तक बने रहेंगे पिछलग्गू हम 
कहाँ खो गया बाहुबल हमारा दम 
नहीं रहे हम कभी किसी से कम 
कहाँ गवाँ रहे हम अपना दमखम। 
एशिया की पगंडडियों पर 
ड्रैगनिस्तान (चीन) की चपल दौड़ देखो 
हम उसके पीछे-पीछे दौड़ रहे हैं
निकल रही हमारी जीभ देखो 
जर्जर हम क्यों होते जाते 
जमकर पिछड़ रहे फिर भी मुस्काते 
एशिया स्तर के खेलों में जोर हमारा 
ड्रैगनिसतान का देखो बुलन्द सितारा
औलम्पिक में हम लाचार हो जाते 
मुँह लटकाकर घर को आते
क्यों हम बेशर्मी से दिल बहलाते 
सवा सौ करोड़ की फौज को शेर बताते 
एक दूसरे की पीठ थपथपाते 
ऐबों को एक-एक कर झुठलाते 
कहते खेल के पहलू दो
हारे एक और जीते दो 
कैसी थकी-हारी कौम हमारी 
हारों में ढूँढे आशा की चमक सारी 
क्यों चुप हैं देश के सब नर-नारी
कब बनेंगे हम खेलों के अटल बिहारी
पूरे देश की नाक पर विपदा भारी 
मौलिक राष्ट्रीय खेल नीति बनाओ
कृष्णा की मुरली के मन में शाश्वत सुर सजाओ।
 
 
 The National News
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