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हुकूमत आग उगलेगी तो कलम की धार उबलेगी
मनमानी करे कोई तो सच की आह निकलेगी ।
हुकूमत का ज़लज़ला है
आहिस्ता-आहिस्ता आएगा
टुकड़ों में बाँटकर शहर को
बारी-बारी तहस-नहस कर जाएगा
जब तक शहर को होश आएगा
ज़र्रा-जर्रा बिखर जाएगा
आँसुओं के सैलाब में यारो शहर डूब जाएगा।
हुक्मरानों ने हाथों अपने
शहर की सूरत बदनुमा की है
शैतानी हाथों से अपने
शहर को यह शक्ल दी है
अब हुक्मरानों का मन डोला है
चप्पे-चप्पे पर दहशत का राज खोला है।
हुक्मरानों का कहना है
शहर को सँवार देंगे
गर्दिश में रहने वालो
बस्ती तुम्हारी उजाड़ देंगे
पर किस्मत को हम तुम्हारी
बुलंदियों तक पहुँचा देंगे
रोने-धोने कोसने-सोचने शोर-शराबे से नासमझो क्या होगा
वही होगा दुखियारो शहर के जो मंजूर-ए-मुख्यमंत्री होगा ।
तुम सब समझा करो तुम हमारे प्यादे हो
हमारे बिना तुम सब अधूरे आधे हो
तुम सब का भविष्य हमारी मुट्ठी में बंद है
शहर की हवाओं पर हमारा पहरा पैबंद है
उफ करोगे तो रौंद दिए जाओगे
भावनाओं को तुम्हारी हम करवट लेना सिखा देंगे
देहरादून को दुनिया का नम्बर वन शहर बना देंगे।
Virendra Dev Gaur( veer Jhuggiwala )
Chief Editor (NWN)