B. of Journalism
M.A, English & Hindi
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
गेरुए कपड़ों में लिपटे ‘‘संत-सैनिक’’ को हम भूल गए
देश-परदेश में धूम मचाई
दुनिया पूरी थी खिंच आई
धन्य-धन्य हे गंगा-माई
कृपा तूने सब-पर बरसाई
धरती माँ ने ली अँगड़ाई
धरम-संस्कृति की बगिया खिल आई
अध्यात्म की बहार थी आई
विश्व शांति की धुन थी छाई
अर्द्ध कुम्भ महोत्सव रहा अचरज भाई।
प्रयागराज के संगम तट पर
हे योगी तुमने इतिहास रच डाला
दुनिया समझे या ना समझे
करिश्मा, हे कर्मवीर तूने कर डाला
गेरुए कपड़ों में लिपटे हे ‘‘राष्ट्र-सैनिक’’
भावनाओं का उड़ता तू समन्दर है
ये ज्वालामुखी जो तेरे अन्दर है
कर्मयोग का ‘‘सुलगता-दहकता’’ मन्जर है।
हे महान राम-कृष्ण प्रदेश
हे अयोध्या, काशी और वृन्दावन के देश
क्या इस सच से रहेगा तू अनजान
क्या इस बात पर नहीं धरेगा तू कान
दो माह चले इतने बड़े महोत्सव का इन्तजाम
जिसमें दाँव पर लगा था देश का मान
शांति से हुआ समापन विशाल दिव्य-अनुष्ठान
मोदी-योगी की जोड़ी का ये बलिदान
प्रबन्धन का किया विकसित अनूठा विज्ञान
माँ गंगे पूरा देश हो मेरा आयुष्मान
दे दो माते कृपालु विजय का पुण्य वरदान।
जय भारत जय जवान जय किसान