
चीन को उसके घर में घुस के धूल चटाने वाली पुरानी हिंदी फिल्मों से हम यह जान सकते हैं कि चीन उपर से जितना अभेद्य दिखता है,हकीकत में वह अंदर से मक्कार किस्म के कायरों का मुल्क है।और उस दौर में भी हम चीन को उसके घर में घुसकर ठोकने की इसलिए कहानी बुन सकते थे कि शासक भी ऐसे ही हौसले रखते थे। आज से 51 साल पहले ऐसी ही एक फिल्म ‘शतरंज’ आयी थी,जब चीन से आज जैसी मुठभेड उन्ही दिनों ताजा ताजा हुई थी।फिल्म में चीन के गुप्तचर हांगकांग,जो उन दिनों ब्रिटेन का हिस्सा था,में शो करने गयी भारतीय नृत्यांगना मीना(वहीदा रहमान) का उपहरण कर उसकी मां समैत चीन में नजरबंद कर देते हैं।चीन दुनिया को बताता है कि भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना ने चीन की नागरिकता ले ली है।हमारे देश का एक डिटेक्टिव(जासूस) जय(राजेंद्र कुमार) सिंगराज व्यापारी के भेष में अपने साथी महमूद और हेलन के साथ चीन के अंदर घुसकर न केवल मीना और उसकी मां को चीन से छुडाकर हिंदुस्तान वापिस लाते हैं,बल्कि चीन का एक बडा और शक्तिशाली हेडक्वार्टर भी ध्वस्त कर आते हैं। 1969 में मैं हाईस्कूल में था,जब ‘शतरंज’ मसूरी माल रोड के कार्नीवाल सिनेमाघर में लगी थी,जो उन दिनों मैजेस्टिक से बृज नाम से हुआ ही था।करीब पांच छ बार देखी थी यह फिल्म। मुझे याद है बंगाल में शतरंज फिल्म के विरोध में नक्सलियों द्वारा कुछ सिनेमाघरों पर पथराव की खबरें अखबारों में छपी थी…आज मुझे लगता है 51 साल बाद अपने दौर की सुपरहिट फिल्म शतरंज शायद इस माहौल में ज्यादा प्रासंगिक है।

इतिहासकार/ वरिष्ठ पत्रकार
-जयप्रकाश उत्तराखंडी
The National News