सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
हम मामूली लोग हैं
हम नहीं चाहते
कोई बे-वजह
हमारा रास्ता रोके।
हम मामूली लोग हैं
समय हमारा भी
बहुत कीमती है
इसलिए हम नहीं चाहते
कोई जबरन बड़प्पन की
धौंस दिखाकर हमें
जब चाहे तब रोक कर
खड़ा कर दे सरे-राह।
गणतंत्र को
तंत्र में मत उलझाओ
हर गण को
गणमान्य बनाओ
राजे-रजवाड़ों की
मत बनो परछाई
तेजी के साथ मिटाओ
आदमी और बहुत महत्त्वपूर्ण आदमी के बीच
सदियों से गहराती जा रही खाई।
हे संन्यासी भाव वाले मोदी जी
क्या आपका दिल नहीं दुखता
इस बे-रहम परिपाटी पर
राजा की सवारी आने पर
क्यों खड़ी कर दी जाती है प्रजा सड़कों पर।
राजा-प्रजा वाले इस
अमानवीय और बे-रहम रिश्ते के अलावा
आखिर कब तक इस देश में
रेलगाड़ियां कुचलती रहेंगी हमारे स्वाभिमान को
जब चाहे तब खड़ा करके
हमें अपने लौह-मार्ग के दोनों ओर
अपराधियों की तरह असहाय
समय की मर्यादा का चीर हरण करते हुए।
-इति