सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
हजारों परतें हैं
फिल्म इंडस्ट्री वालो
औरत की लाचार उम्मीदों की दफ़न
किसे-किसे पहनाओगे
अपनी जिंदा वासनाओं के कफ़न।
तू एक को बनाती है
सौ को बिगाड़ती है
पचास को लूटती-खसोटती है
एक हजार को किसी लायक नहीं छोड़ती।
तूने क्या सबको
समझ रखा है अनाड़ी
तू खुशफहमी में है
खुद को समझती है खिलाड़ी।
तेरी चकाचौंध में
वही होता हे अंधा
जो फिल्म इंडस्ट्री को समझाता है केवल धंधा
अरे छोड़ दे अपना यह पुराना खेल गंदा।
पर्दे के पीछे तुम मर्द लोग
नारी को मौजमस्ती का समझते हो भोग
पर्दे पर आकर पेश करते हो नायक की छवि
इस्तेमाल करते हो एक से बढ़कर एक कवि
तुम्हारे आगे सिर झुका देता हे धोखे में आकर रवि।
फिल्म इंडस्ट्री को मत बनाओ अय्याशी का अड्डा
नारी की भावनाओं को उॅगलियों पर मत नचाओ
फिल्म इंडस्ट्री के कागजी नायको होश में आओ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
सुबह शाम गाओ
उनके मान-सम्मान पर गंदी नजर मत गड़ाओ
कहाँनियों की आड़ में नारी को न फँसाओ
अरे घास-फूस के शेरो-सवाशेरो
सुधर जाओ
स्वाभिमान से बढ़कर कुछ नहीं होता देवियो
फिल्म इंडस्ट्री की बदनाम गलियों में घुसना छोड़ दो
अपने माता-पिता की प्यारी दुलारियो
समझौतों की आँच सेकना छोड़ दो।
-इति