सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
यकीनन ज़िहादिस्तान को
अपने माता-पिता अलीगढ़ पर
खूब नाज़ होगा
सर सैयद अहमद खाँ ने तक
शायद यह न सोचा होगा
कि रामगढ़ की गोद में उनका बोया जा रहा एक बीज
रामगढ़ में मुसलमानों की शिक्षा के नाम पर
ऐसा जोरदार पेड़ बनकर तनकर खड़ा होगा
जो एक ऐसा जिहादी फल उगलेगा
जिसे दुनिया ज़िहादिस्तान (पाकिस्तान) के नाम से जानेगी।
दुनिया एक दिन मानेगी
भारत के जख़्म जानेगी
किन्तु ऐ मेरे जिगर भारत
तू किसी का इन्तजार मत कर
तेरा सफर भयंकर भूचालों से भरा रहा है
इन भूचालों ने तुझे हिम्मत का हाथ दिया है
तू दान देता रहा है
तू मान देता रहा है
पर तू मान तू जानलेवा धोखे खाता रहा है।
इसीलिए देश मेरे तू मान ले
इतिहास की भयानक पीड़ा जान ले
पृथ्वीराज चौहान की दरियादिली छोड़ दे
वास्तविकता से नाता जोड़ दे।
कम से कम अगले पाँच सालों तक
दोनों हाथ जोड़ कर बोल
बजा दोनों हाथों पीट-पीटकर ढोल
मोदी के समझ अनमोल बोल
बंद दिमाग और दिल को खोल
देश हमारा इतना मजबूत बन जाए
धरती पर एक अभेद्य किला तन जाए।
पांडव काल में कौशाम्बी
कुछ समय बाद हरदुआगंज
फिर कभी कोल
कोल के बाद रामगढ़
ओर अब अलीगढ़
पर मेरे देशवासी
इतना तो तू समझ ले
अरे सच्चे मन से शपथ ले
रामगढ़ को बहुत पहले
कई नामों से जाना गया
1775 में पैगम्बर के चचेरे भाई अली के नाम पर
इसे अलीगढ़ कहा गया
गुलामी का पट्टा चस्पा किया गया
क्या हमें आती है खुद पर हया
या कोई बाहर वाला आकर करेगा हम पर दया।
(A poem on the most promising political lady figure on coming sunday or monday)