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चित्त शुद्धि और वित्त शुद्धि से सर्वत्र समृद्धि-स्वामी चिदानन्द

-वैश्विक परिवार को गुरूपूर्णिमा की शुभकामनायें

-भारतीय गुरू-शिष्य परम्परा को नमन

-गुरूपूर्णिमा संशय से श्रद्धा, विषाद से प्रसाद, विकास से प्रकाश की यात्रा

ऋषिकेश (दीपक राणा)। आज गुरूपूर्णिमा के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने पूरे वैश्विक परिवार के गुरूपूर्णिमा की शुभकामनायें और माँ गंगा जी के आशीर्वाद देते हुये कहा गुरूपूर्णिमा भारतीय गुरू-शिष्य परम्परा का बड़ा ही पावन पर्व है।
आज परमार्थ निकेतन में पूज्य महामण्डलेश्वर स्वामी शुकदेवानन्द सरस्वती जी महाराज का 56 वाँ निर्वाण-महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी और पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने पूज्य गुरूओं का पूजन कर पंचदिवसीय सामूहिक संगीतमय श्रीरामचरित मानस पाठ का शुभारम्भ किया।

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि गुरूपूर्णिमा, जीवन में गुरूअवतरण और गुरू सत्ता के अवतरण का पावन पर्व है। सनातन काल से लेकर अब तक गुरू परम्परा के अन्तर्गत आने वाली सभी दिव्य विभूतियों और गुरूजनों को कोटि कोटि नमन! आज महाभारत के रचियता पूज्यपाद श्री वेद व्यास जी का प्राकट्य दिवस भी है।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि गुरूपूर्णिमा अर्थात पूर्ण-माँ, ‘माँ’ बच्चे का विकास करती है और ‘गुरू’ जीवन में प्रकाश पैदा करते हैं। प्रतिवर्ष गुरूपूर्णिमा पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में जो अन्धकार है उसे गुरू रूपी ज्योति दिव्य प्रकाश से प्रकाशित करती है। जीवन तो विकास से प्रकाश, विषाद से प्रसाद और संशय से श्रद्धा की दिव्य यात्रा है। जब शिष्य का सम्पूर्ण सर्मपण होता है तब गुरू की कृपा का अवतरण होता है।

श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्’’ अर्थात जिससे भी प्रकाश मिले, ज्ञान प्राप्त हो, जो भी श्रेष्ठ और सही मार्ग दिखाये, जीवन के अन्धकार, विषाद, पीड़ा को दूर कर कर्तव्यों का बोध कराये वह गुरु-तत्त्व है और वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है।

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि गुरू-शिष्य परम्परा आदिगुरू अंगिरा और महर्षि भृगु, महर्षि अत्रि और अगस्त्य ऋषि जैसे विलक्षण प्रतिभासम्पन्न महानगुरु हुये। महर्षि शौनक, पुलह, पुलस्त्य आदि अनेक ऋषि हुये जिन्होंने गुरुपद को पवित्र और उत्कृष्ट बनाये रखा और सनातन संस्कृति को गौरवान्वित किया। गुरू भारद्वाज, महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय, मतंग, वाल्मीकि, विश्वामित्र, परशुराम और दत्तात्रेय आदि गुरूओं ने सनातन संस्कृति को जिया और हमें भी जीने का मार्ग दिखाया। ऋषि पराशर, गुरू कृपाचार्य, सांदीपनि आदि अनेक गुरु हुए जिन्होंने भारतीय संस्कृति और संस्कारों को जीवंत बनाये रखा। श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आद्यगुरू शंकराचार्य जी ने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित कर चार धामों व चार पीठों की स्थापना की तत्पश्चात गुरुपरम्परा में गुरू गोरखनाथ जी, गुरू वल्लभाचार्य जी, रामानंद जी, माधव जी, निम्बार्क जी आदि अनेक आचार्य, महापुरूष हुये जिन्होंने भारत भूमि को गौरवान्वित किया। आज गुरूपूर्णिमा के पावन अवसर पर सभी गुरूजनों एवं आचार्यों के श्रीचरणों में श्रद्धापूर्वक नमन-वंदन।

आप सभी की साधनायें फलीभूत हों, गुरूजनों का आशीर्वाद सदैव बना रहे, आप स्वस्थ रहें, जीवन सन्मार्ग की ओर अग्रसर होता रहे, जीवन में चित्त शुद्धि और वित्त शुद्धि हो, सभी का अभिष्ठ हो। पुनः गुरूपूर्णिमा की अनेकानेक शुभकामनायें।

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