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माई किशनगंगा की करुण पुकार

(जिहादिस्तान के कब्जाए कश्मीर में जिहादियों के पापों से त्रस्त है माँ किशन गंगा)

माई किशनंगगा दिन-रात हम
यही सोचते रहते हैं
तेरी आजादी के सपनों में खोए रहते हैं
तुझे आजाद कराए बिना हम
चैन से न बैठेंगे
दुश्मन के पहरों को तहस-नहस कर
तेरे पावन जल का आचमन अवश्य लेंगे
तेरे बिरह के गीतों को
सुन-सुन कर माँ हम रोते हैं
हम भी माता कहाँ एक पल चैन से सोते हैं
तेरे आँचल में माँ शारदा के मन्दिर खंडहर बने
हमें उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं
बे-जुबान कैद खंडहर सदियों की याद दिलाते हैं।
ऋषि कश्यप की पावन भूमि तूने तो हमको
रामायण काल से वेदों की सनातन वाणी दी है
तेरी चेतना ने ही तो उपनिषदों की रचना की है
जंबू द्वीप के भाल तूने तो कृष्ण की लीला देखी है
महाभारत काल में धर्म की अधर्म पर जीत भी देखी है
काशी, मथुरा, पुरी, अयोध्या, उज्जैन, रामेश्वरम, द्वारिका और शारदा पीठ का गौरव
किस भारतीय के मन को आत्म-सम्मान से न भर देगा
शारदा माता ही तो सरस्वती माता हैं, यह कौन न कह देगा
शिक्षा का सर्वोच्च प्रदेश , तू तो शिक्षा का ‘शिखर’ रहा है
मौर्य काल तक आते-आते भी तू सिरमौर रहा है
मध्य काल (1200 ई0 के बाद) में तेरी गरिमा धूल-धूसरित हुई है
जब बुत-परस्त विरोधियों से तू खंडित-बेइज्जत हुई है
महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति हरी सिंह नलवे ने फिर तुझे आजाद कराया
किन्तु भारत ने मजहबी बँटवारे के बाद धोखा खाकर लापरवाही से तुझे गँवाया
अब तेरा लगभग आधा अस्तित्व इधर है
मगर बाकी पड़ोसी जिहादिस्तान के चंगुल में पराधीन-पस्त उधर है।
माँ किशनगंगा हम जान हथेली पर लेकर आएंगे
माँ गंगा की सौगन्ध खाकर दनदनाते आएंगे
दुनिया की कोई ताकत हमारे वेग को रोक न पाएगी
बड़ी से बड़ी बाधा सामने टिक न पाएगी
हर चक्रव्यूह को माता किशना हम छिन्न-भिन्न कर देंगे
तुम्हें कब्जाए बैठे जिहादियों को जहन्नुम की सजा देंगे
हमने तो माता सदियों से अपनी धरती खोई है
हर बार भारती माता खून के आँसू रोई है
राम ने चेताया कृष्ण ने चेताया भीष्म ने चेताया
चाणक्य ने चेताया गुप्त वंश ने चेताया
पृथ्वीराज चौहान ने चेताया महाराणा प्रताप ने चेताया
शिवाजी महाराज ने पल-पल चेताया गुरु गोविन्द सिंह जी ने चेताया
महारानी लक्ष्मीबाई ने खूब चेताया
महारानी चेनम्मा ने भी चेताया बहुतों ने जगाया
किन्तु आह! दुर्भाग्य भारतीय चेत न पाया
माँ भारती क्षमा कर दो हमको हमने अपना शौर्य गँवाया
परन्तु, माँ नये भारत को देखो, अर्जुन वाला रथ फिर लौटकर आया
किसी महाराजा ललितादित्य का सुशासन पूरे कश्मीर में अब ना भी लौटे
पर क्या अखंड कश्मीर में जल्दी ही सबकी समानता का ध्वज निर्विघ्न लहराएगा
क्या मोदी युग में ऐसा स्वर्णिम युग आएगा
जिसमें ड्रैगनिस्तान की गुस्ताखियों के लिए उसे खबरदार भी कर दिया जाएगा।
                            -सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।

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