
साम्यवाद की गर्मी से काम लोगे तो घाटे में रहोगे जानी
प्यारे नेपाल उत्तर वैदिक काल तक
क्या तुम्हारा जन्म हो चुका था?
सच तो यह है तुम
महावीर और बुद्ध के जन्म-काल तक भी जन्मे न थे
तुम महाजनपद-काल में भारत के किसी महाजनपद के अंग थे
कभी तुम पांचाल
कभी विदेह तो कभी मगध के रहे हो अंग
हो सकता है कि मगध में नन्द-वंश के समय हुआ हो जन्म तुम्हारा
महाभारत काल यानी लगभग तीन हजार साल पहले तक
तुम हस्तिनापुर के अधीन कोई प्रदेश रहे होगे
इससे पहले रामायण काल में भी तुम भारत के अंग ही थे
वैदेही यानी माता सीता के पिता विदेह यानी जनक जी
भारतीय भू-भाग के राजा ही तो थे नेपाल जी
रामायण काल के जो प्रमाण ‘नामों’ के रूप में नेपाल में मौजूद हैं
वे प्रमाण भी तो यही बात प्रमाणित करते हैं कि नेपाल
भारत से अलग नहीं था
जम्बूद्वीप के अंग थे आप नेपाल जी
क्या मजाक में भी कह सकता है कोई कि भारत था नेपाल का अंग।
भोले शंकर हमारी तरह तुम्हारे भी रहे हैं आराध्य
आज भी लागू होती है यह बात
इसलिए झगड़े का रास्ता मत पकड़ो
साम्यवादी-उग्रवाद के चक्कर में पड़कर
अगर ज़मीन का लेखा-जोखा और पैमाइश के पड़ोगे चक्कर में
तो तुम्हें अपना कम से कम आधा भू-भाग
देना पड़ जाएगा भारत को मित्र नेपाल
इसलिए, क्यों कर रहे हो उत्तराखंड के पिथौरागढ़
अपने नेपाल के धारचुला को आमने-सामने
कम से कम भारत को बड़ा भाई तो मानो बन्धु नेपाल।
साम्यवादी विचार-धारा के उग्रवाद में
भारत-नेपाल के सांस्कृतिक मूल्यों को मत नकारो
वैसे भी साम्यवाद का रास्ता जाता है उग्रवाद की ओर
जहाँ एक पार्टी का तानाशाही राज पकड़ता है जोर
जहाँ लोकतंत्र से नहीं रह जाता कोई वास्ता
पड़ोसी ड्रैगनिस्तान में क्या लोकतंत्र है दोस्त
दूसरें पड़ोसी जिहादिस्तान में क्या लोकतंत्र है बन्धु
ऐसे मुल्कों के बहकावे में मत आओ
भारत के प्यार को मत ठुकराओ
इन मुल्कों की भाषा मत बोलो
साम्यवाद के उन्माद में मत डोलो।
भारत ने गँवाना सीखा है बन्धु
देखो न पिछले बहत्तर सालों में भारत ने
दो नए मुल्कों की दी है दुनिया को भेंट
यानी अखंड भारत तीन मुल्कों में बँट चुका है आज
लेकिन दोस्त नेपाल अब अति हो चुकी
अब भारत किसी भी मुल्क को कुछ देने-लेने की स्थिति में नहीं है
तुम्हें नास्तिकवाद का पकड़ना है रास्ता तो पकड़ो
तुम्हे नेपाल को माओवाद का बनाना है अड्डा तो बनाओ
किन्तु भारत की भूमि को अपना न कहो
अगर पैमाइश का रखते हो शौक तो रहोगे बन्धु घाटे में
भारत को आँखें तरेरकर क्यों अपनी जनता का करना चाहते हो नुकसान
हम कभी नहीं करते किसी का अतिक्रमण और अपमान
बन्धु हमारी बात लो तुम मान
बर्बादी का रास्ता होता है गर्मा-गर्मी और अभिमान।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।