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आत्मनिर्भर भारत के संकल्प का अडिग होना और विरोधियों का रोना

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मोदी मंडल का संकल्प लक्ष्य पाना एकमात्र विकल्प

खलबली है विरोधियों में
मोदी-शाह-राजनाथ युग आया
निर्मला और अजीत ने मिलकर खासा रंग जमाया
हर्षवर्धन ने कोरोना-काल से कुछ ऐसा फरमाया
देख कोरोना तुझसे जंग लड़ँूगा तू खुद चलकर है आया
शह-मात, उठा-पटक और अड़ंगी, देखी तेरी माया
भारत में तूने दो माह से ऊधम बहुत मचाया
मैं तेरे पीछे-पीछे, दौड़ रही, आगे-आगे तेरी काली छाया
मैं माँ भारती का पूत नहीं जो तुझे मैंने न छकाया
धोबी पाट मारकर तुझको दिन में तारा न दिखाया
चैन न लूँगा तब तक जब तक तुझको मजा न चखाया
तू ड्रैगनिस्तान से हट्टा-कट्टा बनकर है आया
चारों खाने तुझको चित न किया तो हर्षवर्धन क्या कहाया
मोदी-शाह के युग में तेरी ये जुर्रत कि तू भारत में घुस आया।
राजनाथ बोले, उत्तर और उत्तर-पश्चिम के पड़ोसियो
तुम लोगों को कोरोना-काल में किसने यह सुझाया
भारत को दबाव में लाने का अभियान तुमने चलाया
तुम लोग बासठ के युग में फिसल गए हो भाया
किसी ने आधा कश्मीर कब्जाया किसी ने अक्साई चिन आ-दबाया
सन् 47-48 और सन् बासठ में तुम खोया-भरमाया
अब कमजोरों का दिल्ली से हो चुका सफाया
ताज्जुब, तुम लोगों ने बन् धु नेपाल को भी बरगलाया
विश्व बन्धुत्व का मतलब तुम्हारी समझ में नही आया
नये भारत में हमलावर को गर्दन -तोड़ जवाब देने का चलन है आया
शौर्य अपना दिखा देंगे अगर हाथ में मौका आया
विगत वर्षों में दिल्ली ने नादानी में बहुत गँवाया
अब नए भारत में है नया जोश समाया।
महादेवी निर्मला सीतारमण जी और अनुराग ठाकुर ने
जी-जान से जो बीस लाख करोड़ का था पैकेज बनाया
उस पैकेज में उन सब लोगों की मदद का वादा है जिन्हें कोरोना ने सताया
सब पाएंगे आर्थिक ताकत जिन्होंने कोरोना काल में कष्ट उठाया
आत्म-निर्भर भारत के संकल्प को इस विपत्ति में भी दोनों ने आगे बढ़ाया
आपदा से जूझना और लक्ष्य से न चूकना है इनका मकसद तभी तो विपक्ष है बौखलाया।
स्वावलम्बन को बल देना
छोटे व्यवसायियों का सम्बल बनना
लघु, मझोले और बड़े उद्योगों को गति देना
मेक इन इंडिया और स्टार्ट-अप को तेज करना
मजदूरों, किसानों और प्रवासी मजदूरों को बढ़ावा देना
बैंकों को नये भारत के लिए तैयार करना
ऊर्जा उत्पादन और ऊर्जा वितरण कम्पनियों को उत्साहित करना
स्वदेशी को बढ़ावा, रक्षा क्षेत्र में स्वावलम्बन लाना
आत्मनिर्भर भारत की ओर मजबूती से कदम बढ़ाना
साकार करना है वित्तमंत्री जी को हम सब का यही सपना।
पहले पाँच साल में मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का जो आधार बनाया
उसी आधार ने तो कोराना-काल में हम सबको बचाया
इकत्तीस करोड़ खाते मोदी ने खुलवाए
आठ करोड़ थे शौचालय कुछ माह पहले तक बनवाए
जन-धन योजना के खूब चर्चे चलवाए
आठ करोड़ मुफ्त सिलिंडर थे बँटवाए
दिव्यांगों और किसानों को तरह-तरह से आर्थिक लाभ पहुँचाए
जल-शक्ति मंत्रालय बनाकर घर-घर नल पहुँचाए
पचास करोड़ लोगों तक आयुष्मान भारत योजना पहुँचाए
वह किया मोदी सरकार ने जो
पिछले साठ सालों में हम न थे कर पाए
ऐसा नहीं कि मोदी से पहले साठ-पैंसठ सालों में
कुछ नहीं हुआ था देश में
हुआ था मगर ‘‘नीति और नीयत’’ का भारी दोष भरा था
भ्रष्टाचार का हिस्सा तब बहुत बड़ा था
अब तो गरीबों का हक़ सीधे खातों में जाता है
इसीलिए तो खाते खोलने की मारामारी चारों तरफ नजर आता है।
कल एक जून की रात
करीब तीन बजे की है बात
झुग्गीवाले ने चार महिलाओं को
अजबपुर, देहरादून में बाईपास के पास स्थित डाकघर की ओर लपकते देख
हल्की बारिश की रिमझिम में डाकघर के आगे बने गोलों मे
उन्हें कुछ पल भर बाद पत्थर रखते देखा
समझ गया मैं कि वे अपनी बारी तय कर रहे थे
लिहाजा, मैं अपने पथ पर आगे निकल गया
मैंने उन्हें डिस्टर्ब करना उचित न समझा
क्योंकि मुझे मनमोहन जी का बेरहम काल याद हो आया
जब हम सिलिंडर लेकर दो-तीन बजे रात तय अड्डो पर बारी लगाने पहुँच जाते थे
भयानक संघर्ष के बाद आठ घंटे की तपस्या कर सिलिंडर लाते थे
कभी-कभी तो खाली सिंलिडर लिये मुँह लटकाए घर लौटा करते थे
सिलिंडरों की कालाबाजारी का दस साल भयानक काला युग था आया
मोदी जी के आते ही वह संकट तत्काल टला था।
खैर, दोबारा लगभग नौ बजे मैं फिर वहाँ पहुँचा
पता चला वे अपने खाते खुलवाने आए थे
मोदी जी की योजनाओं का लाभ उठाने आए थे
लम्बी कतारों में खड़ी महिलाएं संख्या में पुरुषों से अधिक थीं
महिलाएं बोलीं दस बजे की इंतजार कर रहे हैं
तड़के सुबह से यहाँ खड़े हैं
पुरुषों ने बताया केवल पच्चीस मर्दों और पच्चीस औरतों को टोकन दिए गए हैं
कुछ लोग छटपटाए और बोले यह इन्साफ नहीं है
डाकघरों के लोगों को दो-तीन शिफ्टों में लगवाओं
ताकि हम लोगों को इस परेशानी से निजात मिल पाए
अप्रवासी मजदूरों के साथ-साथ स्थानीय मजदूर भी वहाँ खड़े थे
मोदी जी की नीतियों के लाभ से वंचित न रह जाएं इस चिंता में पड़े थे
लेकिन आज फिर वहीं नजारा सामने आया
आज तो तीन बजे से पहले इसी डाक घर में और भी बड़ा जमावड़ा उमड़ आया
अच्छा लगा जब झुग्गीवाले ने दो पुलिस वालों को उन्हें समझाते पाया
इस तरह इतना जल्दी आकर तुम्हें कोई लाभ न होगा
कुछ ही देर में वहाँ पुलिस की गाड़ी पहुँची
पुलिस वालों ने नम्रता से मगर सख्ती से उन्हें चेताया
आठ बजे से पहले यहाँ कोई नहीं आएगा
अभी आप लोग घर जाकर आराम करो और आठ बजे आओ
इस पंक्ति को लिखते समय अभी सुबह का पाँच नहीं बजा है
किन्तु लोगों में इस हड़बड़ी के लिए कौन जिम्मेदार ठहराया जाए
फिलहाल उत्तराखंड पुलिस की फुर्ती और समझदारी के लिए इनकी तारीफ की जाए
हालाँकि, सरकारों को इन लोगों की इस तकलीफ से राहत अवश्य दी जाए
मोदी राज की खूबियों का पूरा लाभ गरीबों को पहुँचाया जाए।
                          -सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।

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