जेहाद के जहरीले गिरगिट तेरे कितने रंग
मौलवी कहो मुल्ला कहो
मुफ्ती कहो उलेमा कहो
तबलीगी कहो मुसलिम लीग कहो
भारत कहो जेहादिस्तान (पाकिस्तान) कहो
मलेशिया कहो इंडोनेशिया कहो
कहो कहो कहते रहो
मुसलसल सहते रहो
बदस्तूर दब-दब कर रहो
फिजा में अमल रहे गाते रहो
एकता के नगमे सुनाते रहो
आज कोरोना है कल कुछ और होगा
आज शाहीन बाग है कल कोई और बाग होगा
बस राग-ए-अमन तुम गाते रहो
समस्या को साल-दर-साल सुलगाते रहो
खुलकर कहने से बचते रहो
डरकर बोलने से तौबा करते रहो
पन्द्रह सौ सालों से भारत की सर-जमीं पर
अरे यही तो है होता आया
कभी कबीर आया कभी रहीम आया
सबने सच को महात्मा बनकर छुपाया
महात्मा गाँधी ने भी दुर्भाग्य से यही किया
सन्त बनकर एकता का पाठ पढ़ाया
सच बोलने का जिगर नहीं दिखाया
काफिरों की सरजमीं पर जेहाद पर परदा गिराया
सन् 47 ने नंगा सबूत पेश कर दिया
पर हमने अपने दिमाग के दरवाजे को बन्द कर दिया
जेहाद सुन लो कथित काफिरो
वह हरा साँप है
जो डसता है छिपता है डसता है छिपता है
कभी-कभी वह नाग का रूप धरता है
अगर कोरोना को जल्दी से जल्दी हमको है हराना
तो जेहादी रवायतों पर संविधान का लट्ठ जोर से है चलाना
आज राम नवमी है इसलिए सच का आईना है हमको दिखाना।
धन्यवाद। सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, देहरादून