तोड़ो-शांति सहनशीलता की सदियों की कसमें
वेदों-उपनिषदों की ऊँची रसमें
दहलीज़ों को फौरन लाँघो तुम
शेरों बब्बर शेरों की छलाँगों से
सीमाएं अपनी फाँदो तुम
सदियों के आक्रोश-बल से झपटो
जिहादी शरीरों के चिथड़े-चिथड़े कर डालो
कट्टर जिहादी रूहों को
क़यामत तक तुम दहला डालो
सदियों पीछे सदियों आगे तक
प्रलय का हाहाकार मचा डालो
कश्मीर के जर्रे-जर्रे से
जिहाद की रूह छिन्न-भिन्न कर डालो
पण्डित नेहरू और शेख अब्दुल्ला के छिड़के विष-बीज
जिहादिस्तान की जिहादी बारहमासा फसलें
मणिशंकर, सिद्धू-गिद्धू, सैफुद्दीन सोज आजाद-वाजाद से तो तसल्ली से निपट लेंगे
तुम दूसरे भेड़ की खाल में घूम रहे भेंड़ियों को कफन पहना डालो
सुन ले पूरी दुनिया भारतीय शेरो अब तुम्हारी ऐसी दहाड़
थर्रा उठे पूरी दुनिया के जिहादियों की एक-एक हाड़।
कब तक सीमाओं पर गँवाओगे वीर सपूत
कब तक जिहादियों की खाओगे गोली और पीओगे झूठ
कब तक मुशर्रफों और इमरानों के कबूलोगे खूनी तोहफे
पन्द्रह सौ सालों का जिहादी सिलसिला दफन करने का समय आया
भारतवासियो शेर बब्बर-शेर बनकर निकलो
माँ भारती का समझो तुम्हें युद्ध का फरमान आया।
Virendra Dev Gaur (Veer Jhuggiwala)
Chief Editor (NWN)