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उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम के छठे दिन दी सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी जानकारी

 

नरेंद्र नगर, 28 मार्च
राजेंद्र सिंह गुसाई

राजकीय महाविद्यालय नरेंद्र नगर में आयोजित उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम के छठे दिन के प्रथम सत्र में तकनीकी विशेषज्ञ एवं रिसोर्स पर्सन डॉ देवेन्द्र कुमार ने छात्रों को सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों पर व्याख्यान दिया। डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया कि क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT), डेटा एनालिटिक्स और वर्चुअल टुअर जैसी नई तकनीकी क्षेत्र में रोजगार के अनेकों अवसर उपलब्ध हैं। एथिकल हेकर, डिजाइनर, कंटेंट किएटर, वेब-एप डेवलेपमेंट, माइक्रोवर्क जैस क्षेत्र आईसीटी उद्यमियों के लिए कई अवसर प्रदान करते हैं, जिसमें ई-कॉमर्स को सक्षम बनाना, परिचालन को सुव्यवस्थित करना, नवाचार को बढ़ावा देना और वैश्विक पहुंच को सुविधाजनक बनाना शामिल है, जिससे प्रतिस्पर्धा और दक्षता को बढ़ावा मिलता है। तकनीकी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके, कार्यों को स्वचालित करके और डेटा अंतर्दृष्टि के माध्यम से निर्णय लेने की क्षमताओं में सुधार करके परिचालन में क्रांति आ रही है जिसमें आईसीटी उद्यमियों को सशक्तिकरण के लिए मार्ग प्रशसत किया जा सकता है। स्टार्ट-अप व्यवसायों के लिए आन-लाइन मार्केटिंग तथा ई-कॉमर्स जैसे प्लेटफार्म उपलब्ध किए जा रहे हैं। डॉ कुमार ने सोशल मीडिया मार्केटिंग, सर्च ईंजन मार्केटिंग, मेल चिम्प जैसे टूल्स पर भी छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षित किया। गिग इकोनॉमी ( Gig Economy) जैसी आर्थिक व्यवस्था के माध्यम से ऑनलाइन प्लेटफार्म जैसे जोमेटो, ओला, उबर, अर्बन क्लैप उपलब्ध हैं जिससे उत्पादों की बिक्री आसानी से की जा सकती है।
द्वितीय सत्र के विषय विशेषज्ञ एवं रिसोर्स पर्सन वनस्पति विज्ञान के डॉ उमेश चन्द्र मैठाणी ने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि हर्बल और औषधीय पौधों का उद्योग महत्वपूर्ण उद्यमशीलता के अवसर उपलब्ध कराता है। प्राकृतिक उपचारों और स्वास्थ्य उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग के मद्येनजर इकोलोजी दीर्घकालिक फायदे पंहुचाती है। जड़ी-बूटी कृषिकरण के लिए इकोलोजी और इकोनोमी में समन्वय होना आवश्यक है। डॉ मैठाणी ने बताया कि एक लाख से ज्यादा पुष्पीय पादपों की पहचान की जा चुकी है जिसमें मानवीय दृष्टिकोण के अनुसार आय सृजन और आजीविका संवर्धन की सबल संभावनाएं हैं। परम्परागत खेती की जरूरतों को दृष्टिगत रखते हुए डॉ मैठाणी ने कहा हिमालयी क्षेत्रों में कृषि हेतु वैज्ञानिक तकनीकी को अपनाये जाने की आवश्यकता है जिससे स्थानीय समुदाय की आर्थिकी को भी बल मिलेगा और पलायन पर भी रोकथाम लग सके। इस अवसर पर डॉ हिमांशु जोशी, डॉ विक्रम बर्त्वाल, डॉ विजय प्रकाश, विशाल, शिशुपाल, अजय, आयुषी गंगोटी के साथ ही छात्र-छात्राएं मौजूद थी।

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