
जगाएं किसे, हम मुर्दो के जंगल में जी रहे हैं
चले कैसे, लंगड़ों के राज में रह रहे हैं
बैठे हैं बंदरों के जंगल में, सच्चाई के गीत किसे सुनाएं
हम खुद ही नहीं जागना चाहते, औरों को कैसे जगाएं
जीवन है साधारण, आशाएं आसमानी हैं
किससे सच्चाई की बात करें, सच्चाई ही जब बेईमानी है
समझ में खुद नहीं आता, कि क्या और क्यों है ये जवानी
मैं खुद के लिए ही नहीं ये बात कहता
ये तो हर सच्चे इंसान की आज कहानी
अगर शंका है तो खुद दिल पर हाथ रखके देखो
पाओगे हर सच्चे इंसान की यही कहानी ।
-हरीश घिल्डियाल (जूनियर झुग्गीवाला)