
प्रवासी मजदूरों का दर्द वित्त मंत्रालय बना हमदर्द
क्या से क्या हो गया–आ–आ
तेरे-ए-ए अन्धकार में
अपना घर छोड़कर
फिर बसाया घर दिल तोड़कर
अपना राज्य छोड़कर
दूसरा राज्य अपनाया दिल खोलकर
काम-धन्धा जमाया हाड़ तोड़कर
विश्वास जमाया सुख-दुख छोड़कर
सम्बन्ध बनाया दिल से दिल जोड़कर
सुकून मनाया यह सोचकर
पल रहे हैं बच्चे
सुबह शाम पेट भर रहे हैं बच्चे
खोली है किराये की जैसी तैसी
पर भूखे तो नहीं सो रहे हैं बच्चे
जिनके बीवी बच्चे
बूढ़े माँ-बाप
रह रहे थे अपने गाँव संसार
उनको भेज रहे थे पैसे
वे भी सन्तोष में जी रहे थे जैसे-तैसे
पर सब लुट गया-आ-आ–
कोरोना काल में
क्या से क्या हो गया
तेरे-ए अन्धकार में—-।
सीने में जलन
आँखों में तूफान सा क्यों है
इस शहर में हर शक्ष
परेशान सा क्यों है
काम धन्धा छूटा
समय ऐसा रूठा
कोरोना का चेन तो न टूटा
पर कोरोना ने हमारा चैन लूटा
थोड़ा जमा पूँजी जो थी पास में
वह उड़ गई इस आस में
कि भागेगा कोरोना का काल
काम का होगा दूर अकाल
दिन रात करेंगे काम
बहुत हुआ बैठे-बैठे आराम
पर न टूटा कोरोना का जाल
कोरोना हुआ मालामाल
हम कंगाल से हो गए फटेहाल
हम काम की आस में
यहाँ हो रहे निढाल
वहाँ अपने गृह राज्य में
बीवी बच्चों का हुआ बुरा हाल
दिल में मची भगदड़ सड़कों पर उतर आई
हमें कुछ नहीं दिखाई दे रहा भाई
बस दिल में उठ रही अँगड़ाई
हर हाल अपने घर पहुँचा जाई
फिर सोच लेंगे कैसे होगी कमाई
हमारे मन में चल रहा घमासान
समझ पाना नहीं है आसान
गरीबी की समझने को दास्तान
पहले जानो और समझो वह अरमान
रोटी,कपड़ा और मकान है जिसकी रूह और जान।
मैडम आते-आते थोड़ी देर कर दी
कब से दर पे आँखें टिकी थीं
मैडम आते-आते थोड़ी देर कर दी
ठीक है केारोना की चल रही थी गुंडागर्दी
मगर—आते–आते—थोड़ी—-।
देवी अन्नपूर्णा
देवी माई लक्ष्मी बनकर
आज जरूर आई
पर कोरोना काल बन गया माई, कसाई
आपकी आत्मनिर्भर भारत की योजनाओं का
लाभ हमें भी अवश्य मिलेगा
मनरेगा पर दरियादिली का भी फायदा होगा
किन्तु, फिलहाल तो कोरोना की मर्जी चलेगी
मैडम निर्मला जी हमारी दुर्दशा बनी रहेगी।
पाँच किश्तों में जो भंडार आपने खोला
आपने सीतारमण जी जो कुछ भी बोला
स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाने का द्वार खोला
अर्थव्यवस्था के चप्पे-चप्पे में अपना बुलन्द इरादा घोला
ऐसा कोई कोना आपने न छोड़ा
जिसे आपने मजबूत भारत, आत्मनिर्भर भारत, के सपने से न जोड़ा
ऐसे समय में जब विश्व थर्रा रहा है
ऐसे समय में भारत गुर्रा रहा है
न भारत डिगा है न भारत डिगेगा
ये जो तमाशा सा सड़कों पे नजर आ रहा है
देश के दुश्मनों को खूब भा रहा है
लेकिन देश पूरी ताकत बटोरता भी नजर आ रहा है
मजदूरों और कामगारों का नया दौर आ रहा है
ये नजारे भयानक सपना बन के पीछे छूट जाएंगे
कोरोना के धीरे-धीरे छक्के छूट जाएंगे
नरेन्द्र मोदी के धीरज और समझदारी के गीत सुन लो बन्धु
कुछ माह बाद पूरी दुनिया के नेता खुद-ब-खुद गुनगुनाएंगे।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।